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________________ - -- - सुदशिनी टीका म० १ ० ११ प्राणिवघप्रयोजनप्रकारवर्णनम् ५३ " रमाएट्मासमेदोऽस्थिमज्जाशुकाणि धातः' इति नह ' नग्वाः, 'नयण' नयनानि-नेत्राणि 'कण्ग ' कर्णाः 'हार' स्नायुः अङ्गप्रत्यङ्गमन्धननाडीविशेषः 'नर' नासिका धमणि' धमन्यो नान्यः, 'सिंग' श्रृगाणि प्रसिद्धानि, 'दादि' दप्मा 'पिन्छ' पिच्छ-मयूरादिपिच्छ, 'रिस' पिपं-काल कटादि 'विसाण' विपाणानि गजदन्ता , पालो =केशाः, एपा 'हेउ' हेतु हेतुमाश्रित्य अस्थिमज्नादिहेवोरित्यर्थः, 'हिंमति' इति पूर्वेण सम्बन्धः ॥सू०११॥ मजा नामक छठयी धातु विशेष को प्राप्त करने का, कितनेक का उनके (नर) नखों का प्राप्त करने का, कितनेक का उनके (नयण) नयननेत्रों को प्राप्त करने का, कितनेक का (फण्ण) फान प्राप्त करने का किननेक का (पहारुणि) स्नायुयों को अग प्रत्यगों को बाधने वाली नाडि विशेषों को प्राप्त करने का, कितनेक का उनकी (नक) नासिका प्राप्त फरनेफा, कितनेक का उनकी (धमणि) धमनियां-नाडिया प्राप्त करने का, कितनेक का उनके (सिंग) शुगों को प्राप्त करने का, कितनेक का उनकी (दादि) दाढों को प्राप्त करनेका, कितनेक का उनकी (पिच्छ) पिच्छों को प्राप्त करने का, कितनेक का उनके (विस) कालकूट आदि विप प्राप्त करने का, कितनेक का उनके विपाण--गज दन्तों को प्राप्त करने का और कितनेक को उनके (पाल) बालों को प्राप्त क ने का, उदेश्य होता है। इन उदेश्यों प्रयोजनों को लेकर अवुधजन इनकी रिसा करते है। सू-११ ॥ વધ તેમની જ મજ્જા નામની છઠ્ઠી ધાતુને પ્રાપ્ત કરવા માટે, કેટલાકને १५ तेमना "नह" नमाने प्रा ४२वान भाटे, 28 १५ तेमना "नयण" नेत्र प्रात ४२वाने माटे, टमानी तमना "कण्ण" न पास ४२पाने भाटे मान 44 "हारणि" स्नायुमान म प्रत्यगान गाधनारी / નસ પ્રાપ્ત કરવાને માટે, કેટલાકનો વધ તેમનુ “” નાક પ્રાપ્ત કરવાને માટે साउन १५ तेमनी "धमणि" धमनीमानामा ४२वाने माटे, 2લાકને વધતેમના “હિં” વિગડા પ્રાપ્ત કરવા માટે, કેટલાકને વધ તેમની "दाढि" altी आस ४२वाने भाट, साउन १५ तमना "पिच्छ” पीछ। प्राप्त ४२काने भाटे, उसाने १५ तेभनु "विस" सर माह विष प्रात ४२वाने માટે, કેટલાકને વધ તેમના વિષાણુ હાથી દાતને પ્રાપ્ત કરવા માટે, અને કેટ લાકને વધ તેમના “ના” વાળ પ્રાપ્ત કરવાને માટે કરાય છે તે ઉદ્દેશે-પ્રા જનેને માટે અબુધ લોકો તેમની હિંસા કરે છે. ૧-૧૧
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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