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अपरिस्रावी-कर्मजलमरेशरहितत्वात् , ' असफिलिट्ठी' असंक्लिअसमाधिमा ववर्जित्तत्वात् ' मुद्धो' शुद्धः-कर्ममलजितवाद , ' सपनिणमणुण्गाओ' सर्व जिनानुज्ञातः- सकलमाणिहितकारकत्वात्सर्वे रईदिरणीकृतभास्ति । पम्-उक्तमपारेण ' पचमं सरदार' पचम सारद्वार ' फासिय ' स्पृष्ट कार्यन, 'पालियं' पालित-सततमुपयोगेन सेपितम् ' सोहिय' शोधितम्-प्रतीचारपर्जनेन 'तीरिय' तीर्ण-तीर प्रापित सम्यरूपालनात् , 'किट्टिय' कीर्तितम्-स्तुतम् कल्याणका सत्वात् , 'आराहिय' आराधितम्-निकरणतियोगे, मम्यगाररितत्वात् , 'आणाए । आजया-सर्वज्ञरचनेन 'अणुपालिय' अनुपालितहमनस्कत्याच है, (अपरिस्साई ) विदुमात्र भी कर्मजल इममें प्रविष्ट नहीं पाता हैं इसलिये यह अपरिस्रावी है । (असफिलिट्ठो) असमाधि भार से रहित होने के कारण यह असक्लिष्ट है, और (सुढो) कर्ममल से वर्जित होने के कारण यह शुद्ध है । (सन्यजिणमणुण्णाओ) इससे समस्त प्राणियो का हित हुआ है और आगे भी हित होगा ऐसा जानकर हरी समस्त अरिहतभगवती ने इसे अगीकृत किया है। (एव पचम सवरदार ) इस उक्त प्रकार से जो इस सपरद्वार को (फासिय) अपने शरीर से आचरित करते है (पारिय) निरन्तर उपयोगपूर्वक इसका सेवन करते है, (सोहिय ) अतिचारों से इसे रहित करते है, (तीरिय) पूर्णरूप से इसका सेवन करते है, (किटिय) दूसरों को इसके पालन करने का उपदेश देते हैं (आराहिय ) तीनकरण तीन योग से इसकी भली प्रकार से अनुपालना करते हैं, (अणाए अणुपालिय भवइ) उनके द्वारा यह योग तीर्थकर प्रभु की आज्ञा अनुमार ही पालित तनाथा पापना योत छिन्न थ य छ तेथी त मछिद्र छ, "अपरिस्साई" બિન જેટલું પણ કર્મ જળ તેમાં પ્રવેશ પામી પાકતું નથી, તે અપરિસ્ત્રાવ छ, “असफिलिट्रो" असमाधिलायी हित पाने २0 ते अस सिट छ मन 'सुद्धो" भभ लिनु डावाथी ते शुद्ध छे “सम्वजिणमणुण्णाओ" તેનાથી સમસ્ત પ્રાણીઓનું હિત થયું છે અને ભવિષ્યમાં પણ હિત થશે मे तीन समस्त मरिहत लगवानास तेने मान्य ३२ छ 'एब पचम सवरदार " ॥ सूत्रमा ४ा प्रभारी २ सपायमा सवारनु "फा सिय ' पाताना शरीरथी माय२९५ ४२ छ, “पालिय" निरन्तर रुपये पू: तनु सेवन ४२ छ, 'सोहिय" मतियाशथी तर २डित ४२ छ, 'तीरिय " पूरी रीत तेनु सेवन ४२ छ "किट्टिय" अन्यने तना पासना ५३२ मा छ "आराहिय " ] ४२६५ मने जाए। योथी साशते तेनी माराधना ४२ छ, “ आणाए अनुपालिय भवइ" तभना द्वारा ते योगनु तार्थ ४२ प्रभुना