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टीका- ' तय
सुदर्शिनी टीका अ०५ सू ९ 'घ्राणेन्द्रियसवर नामक तृतीयभावनानिरूपणम् ९१७ किमिण बहुदुरभिगंधाई, अन्नेसु य एवमाइएसु गधेसु अमशुनपावएस न तेसु समगेण रूसियव्वं न हीलियव्व जाव पणिहिइंदिए चरेज धम्म ॥ सू० ९ ॥ तृतीया घ्राणेन्द्रियसवरणाभिधेयां भावनामाहघाणिदिएण ' प्राणेन्द्रिएण ' मणुन्नभदगाइ' मनोज्ञ भद्रकान्' गराइ ' गन्धान् 7 अग्वाइय ' अत्राय ' ते ' कान् वान् कथम्भूताँस्तान गन्धान् इत्याहजलयर-थलयर - सरस- पुप्फफलभोयण - कुट्ट - तगर - पत्त-चोय दमणग-मरुय - एलारस परमसि - गोसीस - सरस- चढण - कप्पूर - लवग - अगर - कुकुम +कोलउसीर - सेस - चदण- मुगधसारग - जुत्तिवरधूवना से ' जलचर - स्थलचर- सरस- पुष्पफल- पानभोजन- कुष्ठ- तगरपनत्वचा दमनक - मरु कैलारस - पक्कमांसी- गोशीर्षअब सूत्रकार परिग्रह विरमण व्रत की तीसरी भावना को समझाते हैं- 'तय' इत्यादि ।
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कार्थ - (a) इसकी तीसरी नावनाका नाम घ्राणेन्द्रिय संवरण है । इस भावनावाले साधु को घ्राणेन्द्रियके मनोज्ञ भद्रक गंध को सूघ करके राग नहीं करना चाहिये और अमनोज्ञ पोपक अशुभगधो को सुघर छेप नहीं करना चाहिये । इस सूत्र में इसी विषय को सूत्रकार विशेषरूप से स्पष्ट करते हैं ( किं ते) वह मनोज्ञ मद्रक गध कौन है इस प्रकार की आशका का उत्तर देते हुए सूत्रकार कहते है - ( जलचर - धलचर- सरस-पुष्पफल - पाणभोषण- कुट्ठ- तगर - पत्त- चोय - दमणकमरुय- एलारस-पक्कवमभिगोसीस - सरसचदण - कप्पूर - लवग - अगुरु कुकुम - ककोल्ल - उसीर - से सचद्ण-मुगध - सारग - जुक्तिवर - धूववासे ) હવે સૂત્રકાર પરિગ્રહ વિરમણ વ્રતની ત્રીજી ભાવના સમજાવે "" तइय त्याहि-
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टीअर्थ " तइय " આ વ્રતની ત્રીજી ભાવનાનુ નામ ધ્રાણેન્દ્રિય સવરણ છે. આ ભાવનાવાળા માધુએ પ્રાણેન્દ્રિયને માટે મના ભદ્રક ગધને સૂધીને તેમા રાગ કવા જોઇએ નહી અને અમનેાજ્ઞ પાપક અશુભ ગધેશને સૂધીને તેમના પ્રત્યે દ્વેષ કરવા જોઈએ નહીં એ જ વિષયનુ સૂત્રકાર વિસ્તારથી स्पष्टी४२ रे छे " किं ते " ते मनोज्ञ लट् गध शेनी शेनी होय छेते प्रश्नन। उत्तर भायता सूत्रार हे छे - " जलयर - थलयर - सरस- पुष्कफलपाणभोयण- त्रुट्ट - तगर-पत्त-चोय-दमणक-मध्य- एलारस पक्कमति - गोसीस - सरसचद ण -कपूर- वग-अगुरु- कुकुम - ककोल्ल - उसीर से सचदण-सुगध सारंग जुत्तीवर