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________________ व्याकरणसूत्रे मूलम् - इमं परिग्गहवेरमणपरिराखणट्टयाए पावयर्ण भगवया सुकहियं अत्तहिय पेच्चाभावियं आगमेसिभद्द सुद्ध नेयाउय अकुडिलं अणुत्तरं सव्वदुक्खपाचाणं विउसमणं, तस्स इमा पंचभावणाओ चरिमस्स वयस्त हुति, परिग्गहवेरमणरवखण्ड्याए ॥ सू० ६ ॥ टीका -' इम च ' इत्यादि " इम च' इद चापरिग्रहनामक पञ्चम सरद्वार 'परिग्गहवेरमणपरिरक्खण याए' परिग्रहविरमणपरिरक्षगार्थतया परिग्रहविरमणस्य परिरक्षणमेव अर्थः प्रयोजन यस्य तत्, तदेव तत्ता, तया अत्र स्वार्थे तल, परिग्रहविरतिपरित्राणायेत्यर्थः, होकर (गे) रागादिक भावोंसे वर्जित होनेसे एक, ऐसा जो होता है वही (धम्म) चारित्ररूप धर्मको (चरेज) पालन करने वाला हो सकता है। भावार्थ सूत्रकारने इस सूत्र द्वारा यह स्पष्ट किया है कि परिग्रहविरत रूप साधु धर्म में लवलीन बने हुए मनुष्य की स्थिति कैसी हो जाती है। तथा वह इस स्थिति से सपन बनेगा तब ही पूर्णरूप से वह श्रमण धर्म के पालन करने का अधिकारी वन सकता है अन्यथा नही। सूत्र में यही विषय शब्दान्तरो से समझाया गया है ।। सू०५ ॥ फिर भी कहते है- ' इम च' इत्यादि० | टीकार्थ - ( इम च ) यह अपरिग्रह नाम का पाचवा सवर द्वाररूप ( पावयण) प्रवचन ( परिग्ग हवेरमणपरिरक्याए ) परिग्रहविरमग ઉપશાન્ત ભાવથી યુક્ત થઈ ને ‘નૈ” રાગાદિક ભાવાથી રહિત હાવાથી એક, એવા જે થાય છે તે જ ८८ धम्न शास्त्रिय धर्मनु “चरेज्ज" पासन दरनार થઈ શકે છે. ८८८ ܝܕ ભ વાય~~સૂત્રકારે આ સૂત્રમા એ સ્પષ્ટ કર્યું છે કે પરિગ્રહથી વિરક્ત થવા રૂપ ધમમા લીન બનેલ મનુષ્યની સ્થિતિ કેવી થઈ જાય છે તથા જ્યારે તે આ સ્થિતિએ પહેાચે ત્યારે જ તે સપૂર્ણ રીતે શ્રમણ ધ'નુ પાલન કરવાને પાત્ર ખની શકે છે ખીજી કાઈ પણ રીતે નહી સૂત્રમા એ જ વિષય જુદા જુદા શબ્દે દ્વારા સમજાવવામા આવ્યે છે ! સૂપ वजी हे छे - " इम च " इत्यादि 14 टीडअर्थ - " इम च" या परिश्रद्ध नामना पायभा सवरद्वार "पावयण' अवयन परिग्गहवेरमणप रिक्सणट्ट्याए " परियड विरभ व्रतनी रक्षाने भाटे "1 भग
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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