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________________ १८६ %3 प्रभभ्याकरण जहा' उरगो यथा-सर्प इव 'कयपरनिलए चेर' कृतपरनिलयश्चैव-कृत आत्र यीकृतः परनिलयो येन सः, अय भार:-यथा सर्पोऽन्यकृतनिले तिष्ठति, तथेत्र श्रमणः परकृतगृहे तिष्ठति । तथा- अनिलोय' अनिक इरम्परन हर 'अप्पतिबद्धो' अप्रतिमा-अप्रतिमन्याविहारीत्यर्थः, तथा 'जीयोग्य 'जीर इव 'अप दिहयगई' अपतिहतगतिः= सर्पदेशविहारीत्यर्थः । यत्र सर्वत्र 'चैत्र ' शन्दः समुच्चयार्थ., 'गामे गामे य' ग्रामे ग्रामे च 'एगराय' एकरात्र 'णगरे गगरे' नगरे नगरे 'पचराय' पञ्चरानम् , ' दूइज्जतो' द्रान-विहरन् निवास कुर्वनित्यर्थः, तथा ' जिइदिए ' जितेन्द्रियः, 'जियपरीसहे' जितपरिपड , अतएव 'निभ' निर्भयः 'विऊ ' विद्वान-तत्त्वम इत्यर्थः, 'सचित्तावितमीसएहि' है ( कयपरनिलए जहा चेव उरण ) सर्प की तरह वह दूसरे ने अपने निमित्त रनाये हुए घर में रहता है, अर्थात् जिस प्रकार सर्प अन्य चूहे आदि से बनाये गये बिल में रहता है उसी प्रकार साधु भी गृहस्थ के बनाये हुए घर में रहता है। (अप्पडिपद्धो अनिलोव्व ) अनिल पवन-की तरह वह अप्रतिबद्ध - प्रतिवन्ध से रहित होता है अर्थात् वह साधु अप्रतिवन्ध विहारी होता है। तथा (जीवोन्य अप्पडिहयगई) जीव की तरह वह अप्रतिहत गतिवाला होता है-उसका विचरण सर्वत्र होता है-उसे कीसी भी देश में विचरण करने का निषेध नहीं होता है। (गामे गामे य एगराय ) वह हर एक ग्राम में एक रात्रा तथा (णगरे णगरे य पचराय) तथा प्रत्येक नगर में पाच रात्रि तक (दइज्जते) ठहरता है। तथा (जिइदिए) जितेन्द्रिय (जियपरिसहे य) जितपरीषद अत एव (निन्मए) निर्भय (विऊ) विद्वान्-तत्त्वज्ञ, वह परनिलए जहा चेव उरए" सपना मत जान पाताना भाटे मनाया ઘરમાં રહે છે, એટલે કે જેમ સર્ષ ઉદર આદિએ બનાવેલા દરમાં રહે છે तम साधु ५५ १२थे मनासा घरमा २ छ “ अप्पडियद्धो अनिलोब' અનિલ-પવનની જેમ તે અપ્રતિબદ્ધ-પ્રતિબધથી રહિત હોય છે-એટલે કે તે मप्रतिम विडारी डाय छ " जीवोव्व अप्पडिहयगई" नी रेभ ते म તિહત ગતિવાળો હોય છે તેનું વિચરણ સર્વત્ર હોય છે તેને કોઈ પણ પ્રદ शमा वियरवाना विध खात नथी "गामे गामे य एगराय " ते ४२४ गाभा से रात्री तथा “ गरे गरे च पचराय " तथा प्रत्ये: नारमा पाय शनि सुधी “दइज्जते " जय छ तथा "जिइ दिए " Paन्द्रय" जियपरि सइय" ५५डाने सतना पाथी "निभए " निमय “ विऊ" विधान
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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