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________________ मुदर्शिनी टीका १० १ ० ९ भुजपरिसर्पमेदनिरूपणम् प्रमाणशरीरा मनु"यक्षेत्राहि पिनउर परिसर्पविशेषा', एपो द्वन्द्व' । उरगविधाना: उरगप्रकारा कृताः। तान् च एवमादीन् 'घ्नन्ति' इत्यनेन सम्बन्धः ।।मु०८॥ अथ भुजपरिसर्पभेदानाह–'डीरल.' इत्यादि । मूलम्-छोरल-सरंव-सेह-सेल्लग-गोधा-उंदुर--णउलसरड-जाहक-मंगुस-खाडहिला-चाउप्पइय-घरोलिया-सरीसिव गणे य एवमाई ॥ सू० ९ ॥ टीका-क्षीरलाः, शरम्याः, 'सेहा.' तीक्ष्ण कण्टकाकुलकाया , शैल्यकाः, एते सर्वे भुजपरिसर्पविशेपाः । गोधाः मसिद्धाः, उन्दुरा =मृपकाः, नकुलाः प्रसिद्धाः है । (महोरगा) महोरग ये वे सर्प हैं गिजिनका शरीर एक हजार योजन का होता है, तथा ये मनुष्य क्षेत्र से गाहिरी क्षेत्रों में उत्पन्न होते है। (उरगविहाणोकएय) ये सब भेद उर परिसो के है पापी जीव इन्हे मारते है । सू ८॥ ___अब भुजपरिसर्प के भेदों को सूत्रकार प्रकट करते है-'छोरल. सरय' इत्यादि। टीकार्य-(डीरल-सरम-सेह गोधा-उदुर-गउल सरंड-जादक मगुस खाडहिला-चाउपत्य-घरोलिया-सरीमिच गणे य एवमाई)क्षीरल, शरम्य सेह ये वे जीव है कि जिनका शरीर क,टों से युक्त रहता है। सेह को हिन्दी भाषा मे “सेही" कहते है, इसका आकार श्रृगाल जैसा होता है, इसके शरीर पर तीखे नुकीले काले और सफेद रग वाले काटे होते है । ये भेद भुजपरिसॉ के है । गोधा-गुहेरेकी माको कहते हैं यहाभित्ति पर इतनी मजबूती के साथ चिपक जाती है कि इसे पकड़ कर चोर મહોરગ, તે એવા સર્પ હોય છે કે જેમનું શરીર એક હજાર એજનનું હોય छे, तथा ते मनुष्य क्षेत्रका गायन क्षेत्रमा पन्त थाय छ "उरगविहाणाकएय" આ બધા ઉર પર્પોિના ભેદ છે પાપી છે તેમની હત્યા કરે છે સૂ ૮. व पश्मिना होने सूत्रा२ प्रसट ४२ छ-" छीरलसरय" ५त्यादि साथ-"जीरल, सर य, सेह, सेल्लग गोधा उदुर, उल, सरड, जाहक, मगुस, साडहिला, चाउप्पइय, घरोलिया, सरीसिव, गणे य एषमाई" क्षीरस, शम्म, સેહ, તે છે ડાટા થી યુક્ત શરીરવાળા હોય છે તેને ગુજરાતી ભાષામાં સાહુડી કહે છે તેને દેખાવ શિયાળ જેવો હોય છે, તેના શરીર પર તીણુ, અણીદાર, કાળા અને સફેદ ૨ગના કાટા હોય છે તે ભુજપરિસર્પોના ભેદ છે " गोधा" ५८सा याने उडे छे ते हिवास ५२ मेसी Hars व्याटी लय छे.
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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