SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रिखबचन्दजी साहब के श्री दीपचन्दजी, शंकरलालजी सुगनराजजी एवं महेन्द्रकुमारजी ये चार पुत्र एवं सौभाग्यवाई तथा पुष्पाबाई ये दो पुत्रियां हैं। . इस परिवार का वंश वृक्ष इस प्रकार है गुलाबचन्दजी सा० (दादा) प्रेमचन्दजी सा० (पिता) चिमनलालजी सा० . रिनवचन्दजी सा. ____(पुत्र) - .I___ (पुत्रिया) । दीपचन्दजी शंकरलालजी सुगनराजजी महेन्द्रकुमार सौभाग्यबाईपांच पुत्रियों बदामबाई खमावाई जम्मुवाई सरस्वतीबाई धापुवाई धार्मिकजीवन___व्यापारिक जीवन के अतिरिक्त आप भातृद्वय-दोनों भाइयों का सार्वजनिक एवं धार्मिक जीवन विशेष सराहनीय है । आपने सार्वजनिक कार्यों के लिये बहुत अधिक दान दिया है। आपने सर्वसाधारण के लिये समय समय पर अकाल रोग बाढ आदि के अवसरों पर भी काफी सहायताएं दी है। आपने कई व्यक्तियो' को आर्थिक सहायता देकर धंधे में लगाया है। विद्यार्थियों को आर्थिक सहयोग देकर अपनी विद्याप्रियता का परिचय दिया है। पर्युपणपर्व आदि धार्मिक उत्सव के अवसर पर आसन, पूंजनियां माला आदि धर्मोपकरण के साथ साथ अन्य कई उपयोगी वस्तुओं की भी प्रभावना करते रहते हैं। आपने निजी खच से वि.सं. २००४ में दीक्षा भी दिलवाई है। साहित्यप्रेम-- __ जैनसाहित्य प्रकाशन कार्य में आपकी बडी दिलचस्पी है । कई ग्रन्थों के प्रकाशनों में आपका आर्थिक सहयोग रहा है। आप ने अभी अभी अखिल भारतीय श्वे० स्था जैन शास्त्रोद्वारसमिति राजकोट को दानार्थ ५०००) पाँच हजार रुपये प्रदान कर समिति के सन्माननीय सदस्य बने हैं। आपका यह साहित्य प्रेम सराहनीय है। माहित्यशिक्षा के प्रति आप उदार चेताओं का कितना ध्यान है यह उपरोक्त ज्ञान दान बता रहा है।
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy