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राजप्रश्नीयसूत्रे
गृह तत्रैव उपागच्छति, उपागत्य तत् महाय" यावत् प्राभृतस्थापयति, . कौटुम्बिकपुरुषान् शब्दयति, शब्दयित्वा एवमवादिपु: क्षिपमेव भो देवानु: प्रियाः ! सच्छत्र यावत् युद्धमजं चातुर्वण्टम् अश्वरथ युक्तमेव उपस्था. पयत यावत् प्रत्यर्पयत । ततः खलु ते कौटुम्बि पुरुषाः तथैव प्रतिश्रुत्व क्षिप्रमेव सच्छत्र यावत् युद्धसजा चातुर्घण्टम् अश्वरथयुक्तमेव उप्राथापयन्ति, बीचों बीच से होता हुआ जहाँ अपना गृह था वहां पर आया (उवागच्छित्ता त महत्थं जाव पाहुडं ठवेइ) वहां आकर के उपने उस महाथमहाप्रयोजनसाधक यावत् माभूत को एक तरफ रख दिया (कोढुं विय पुरिसे सदावेह) और अपने कौडम्बिक पुरुषोंको बुलाया (सहोवित्ता एवं वयासी) उनसे ऐसा कहा (विप्पामेव भी देवाणुप्पिया ! सच्छत्तं जाव जुद्रसज्ज चाउग्घट आसरह जुत्तामेव उववेह, जाव पच्चप्पिणह) हे देवानुमियो ! तुम लोग शीघ्र ही. रथ को घोडा जोतकर तैयार करके यहां ले आओ, उसे चार घटाओं से सजित करना. यावत् फिर हमारी इस आज्ञा को हमें वापिस करना-उस पर छत्र भी लगाना यावत् उसे युद्ध के योग्य सजित करना. (तएणते कोडुचियपुरिसा तहेव पडिसुणित्तो खिप्पामेव सच्छत्त' जाव जुद्ध सज्ज चाउरएंट आसरहजुत्तामेव उवट्ठवें ति) चित्र सारथि के इस प्रकार वचन सुनकर उन कौटुम्बिक पुरुषों ने बहुत
ही जल्दी छत्रयुक्त करके यावत् चार घंटोंवाले उस अश्वरथ को तैयार गिहे तेणेव उवागच्छइ) भने श्वेतविआनगरीनी च्ये या पोतानुधर हेतु त्यां गयो (उवागच्छित्ता त महत्थं जाव पाहुड ठवेइ) त्यांना तेथे ते भाथ साथ भडाप्रयोग साध यावत् लेटने मे त२३ मीहीधी, (कोडुवियपुरिसे सद्दावेइ) भने पोताना डौटुमि पु३को मासाच्या, (सदावित्ता एवं यासी) मोसावी तमन
, (खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सच्छत्तं जाव जुद्धस जं चाउग्घटं आसरहं जुत्तामेव उववेह जाव पचप्पिणह) वानुप्रियो ! तमे पातरीन શીધ્ર રથ તૈયાર કરે, અને અહીં લાવે, રથને ચાર ઘંટાઓથી સજિજત કરો થાવત આજ્ઞા પ્રમાણે કામ પૂરું કરીને અમને ખબર આપ, રથની ઉપર છત્ર હોવું नये यावत् मधी शत युद्धनी माटे याय हाय तेम Arora ४२०, (तएण' कोडवियपुरिसा तहेव पडिसुणित्ता खिप्पामेव सच्छत्तं जीव जुद्धसज्ज चाउग्घंटं आसरह जुत्तामेव उवट्ठवें ति) nि सायना मा प्रमाणे चयन સાંભળીને તે કૌટુંબિક પુરુષોએ એકદમ ત્વરાથી છત્રયુકત યાવત, ચાર ઘટેથી સુસ