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सुबोधिनी टीका सू. १५१ सूर्याभदेवस्य पूर्व भवजीवप्रदेशिराजवर्णनम् खलु व मदेशिराज ! एत तृणवनस्पतिकायम् एजमान यावत् ततौं भाव परिणममानम् ! हन्त ! पश्यामि। जानासि खलु त्वं प्रदेशिन् ! एत' . तृणवनस्पतिकाय किं देवश्चालयति असुरो वा चालयति नागो वा चालयति किन्नरो वा चाल यति किंपुरुषो वा चायति महोरगो वा चालयति गन्धर्यो वा चालयति ! हन्त !! जानामि-नो देवश्वालयति जाव नो गन्धर्वश्चालयति
केसीकुमारसमणे पएसिराय एवं वयासी-पाससि ण तुम पएसी राया! - एय तणवणम्सई एयंत जाव तत भावं परिणमत') तब केशीकुमारश्र. मणने प्रदेशी राजा से इस प्रकार कहा-हे प्रदेशिन् ! तुम इस तृणवनस्पति काय को सामान्य विशेषरूप से कपित होते हुए यावत् एजनादिरूप भिन्नर प्रकार के व्यापार में परिणत होते हुए देख रहे हो न? तब प्रदेशी राजाने कहा (हता, पासामि) हां, भदन्त ! देख रहा (जाणासि णं तुमं पएसी! एय तणव. णसइकाय किं देवो चालेइ, असुरोवा चालेइ, णागोवा चालेइ, किन्नरो वा चालेइ, किंपुरिसो वा चालेइ, महोरगो वा चालेइ, गधन्वो वा चाइ) तष केशीकुमारश्रमण ने उससे कहा हे प्रदेशिन् ! तुम जानते हो कि इस... तृणवनस्पतिकाय को कौन चलाता है? क्या देव चलाता है, या नाग, चलाता है या किन्नर चलाता है, या किंपुरुष चलाता है, या महोरगचलाता है या गंधर्व चलाता है ? प्रदेशीने कहा-(हता, जाणामि) हां, भदन्त ! जानता हूं (णो देवो चालेह जाव णो गंधवो चालेइ वाउकाए
केसी कुमारसमणे परसिं रायं एवं वयासी-पाससि ण तुमं पएसि राया । एये तणवणस्सइ एयंतं जाव तत भाव परिणमंति) त्यारे शी भा२ श्रमण પ્રદેશી રાજાને આ પ્રમાણે કહ્યું કે હે પ્રદેશિન ! તમે આ ખૂણવનસ્પતિકાયને સામા ન્ય વિશેષરૂપથી કંપિત થતાં યાવત્ એજનાદિરૂપ ભિન્ન પ્રકારના વ્યાપારમાં પરિशुत मा छ।. ? त्यारे प्रदेशी २०-ये ४थु (हता पासामि) i महत ! शो छु (जाणासि ण तुम पएसी! एयं तणवणस्सइकार्य किं देवो चालेइ, असुरो वा चालेइ, णागो वा चालेइ, किन्नरो वा चालेइ, किपुरिसो वा चालेइ, महोरगो वा चालेइ, गंधयो वा चालेई) त्यारे शीमा२ श्रभो तेने ह्यु હે પ્રદેશિન્ ! તમે જાણો છો કે આ તૃણવનસ્પતિકાયને કેણ ચલાવે છે? શું દેવ ચલાવે છે? કે અસુર ચલાવે છે? કે નાગ ચલાવે છે? કે કિન્નર ચલાવે છે?
Y३५ सावे छ, 'ध यावे छ ? प्रदेशी २०४॥ये घु-(हता, जाणामि) Si मत ! aur g. (णो देवो चालेइ, जाव णो गंधव्वो चालेइ, वाउकाएं