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सुबोधिनी टीका सु. १३६ सूर्याभदेवस्य पूर्व भवजीवप्रदेशिराजवर्णनम् २२९
छाया-ततःखल केशी कुमारश्नमणः प्रदेशिन राजानमेनमवादोत् । सा यथानामकं फूटाकारशाला स्यात् द्विधातो लिप्ता गुप्ता गुप्तद्वारा निवातगम्भीरा, श्रथ खलु कश्चित् पुरुषः भेरी च . दण्डं च गृहीत्वा कूटाऽऽकार-शालायामन्तरन्तः अनुःप्रविशति तस्याः कटाऽऽकारशालायाः सर्वतः समन्तात् घननिचितनिरन्तरनिश्छिद्रागि द्वारवदनानि पिदधाति, तस्याः क्टाऽऽकार
'तरण केसी कुमारसमणे' इत्यादि। ..
मूत्रार्थ-(तए णं केसीकुमारसमणे) इसके बाद केशीकुमार श्रमणने (पएसि रायं एवं वयासी) प्रदेशी राजा से ऐसा कहा (से जहा नामए कूडागारसाला सिया दुईओ लित्ता गुत्ता गुप्त दुबारा. णिवायगंभीरा) हे प्रदेशिन ! जैसे कोई एक कुटाकारशाला हो पर्चत की शिखर जैसी आकृतिवाला भवन हो और वह भीतर बाहर में आच्छादित हो, आच्छादित द्वार प्रदेशवालीहो, निवात गंभीर हो वायुहित होती हुई गंभीर अन्तः प्रदेशवाली हो (अहण केइपुरिसे भेरिं च दंडं च महाय कूडागारसालाए अंतो अणुप्पविसइ) अय कोई पुरुष भेरी और दंडे को लेकर उस कूटाकारशाला के भीतर घुस जाता है, (तीसे कूडागारसालाए सबओ समंता घणनिचियनिरंतरणिच्छिड्डाई दुवारवयणाइपिहेइ) और घुसकर वह उसके दरवाजों को चारों तरफ से इस तरह से बन्दकर लेता है कि जिससे उनके कियाड आपस में बिलकुल सट 'जाते हैं थोडासा भी अन्तर उनमें नहीं रहता है. छिद्र उनके बन्द हो जाते हैं,
'तएणं केसीकुमारसमणे' इत्यादि। . . . . सूत्रार्थ-(तए णं केसीकुमारसमणे), त्यार पछी ४१भा२ श्रभरे (पएर्सि रायं एवं बयासी) प्रदेशी ने मा प्रमाणे ४यु (से जहा नामए कूडागारसाला सिया दुहओ लित्ता गुत्ता-गुत्तदुवारा णिवायगंभीरा) હે પ્રદેશિન્ ! જેમ કોઈ એક ફૂટકારશાળા હોય પર્વતના આકાર જેવું ભવન હોય અને તે બહાર અને અંદરના ભાગમાં આચ્છાદિત દ્વારા પ્રદેશયુકત હોય, નિવાત neीर डाय-५वन. २डित तेमका ला२ मत: प्रदेश 'युत डोय, (अहणं के पूरिसे भेरि च दंडं च गहाय कूडागारसालाए अंतो" अणुप्पविसह) वे Bई पुरुष ले भने ने सन १२ मा पेसी 14 छ. (तीसे कूडा. गारसालाए सव्वी समंता, घमनिचियनिरंतरणिच्छिाई दुचारवयणाई पिहेइ) मने पेसीन ते चा वाराने २ प्रमाणे ५ ४श छ थी तमना બારણાના કમાડો એકદમ અડીને બંધ થઈ જાય છે. તેમની વચ્ચે થોડું પણ એના