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राजप्रशोयसूत्रे पएसी : मम पासित्ता अय मेयारूने अज्झथिए जावं समुप्पजित्था- . जडा खल्लु भो ! जड जपवासति जाव पवियरित्तए से गूणं पएसी ! अष्टे समत्थे ? हंता ! अत्थि ॥सू० १२८॥ - छाया-तनः बलु स प्रदेशी राजा चित्रेण सारथिना सा यत्रैव केशो कुमार श्रमणः तत्र व उपागच्छनि. केशिनः कुमारश्रमणस्प अदूरमामन्ते स्थित्वा एवमवादीत्-युपं खलु भदन्त ! अधोऽवधिकाः अन्ननी: विताः । नतः खलु केशीकुमारश्रमण : प्रदेशिन राजानमेवमवादीत-प्रदेशिन् ! तयथा नाम-अङ्कवणिज इति वा शङ्कवणिज इति वा दन्त वणिज. '.. 'तए णं से पएसी राया चित्तण सारहिणा सदि इत्यादि।
मूत्रार्थ-(तए णं) इसके बाद (से पएसी राया वित्तेण. सारहिणा महि) वह प्रदेशी राजा चित्र सारथि के साथ (जेणेत्र केमिकुमारसमणे तेणेव उवागच्छई) जहां के शिकुमार श्रमण थे वहां पर गया (कमिस्स कुमाः रसमणस्स अदरसामते टिच्चा एवं क्यासी) वहां जाकर बह के शिकुमार श्रमण से एसे स्थान पर खड़ा रह गया कि जो स्थान न उनसे अधिक दूर था और न अधिक पाम था। वहीं से खडे२ इसने उनसे एमा कहा(तम्भे गं. भंते ! आहोहिया अण्णजो विग) हे भदन्त ! आपका ज्ञान-अबविज्ञान परमावधि से किंचित् न्यून है, और आप प्रामुक एषणीय हो
आहार करते हैं ? (नए गं के माकुमारसमणे पएसिं राय एवं वयासी) तब केशो कुमार, श्रन गने, प्रदेशी राजा से ऐसा कहा- पएपी! से नहा. णामए. अंक आणि इ बा, दंत वाणिपाइ वा, मुक भप्तिकामा. गो. पम्न: ।
'तए. ण से पएसी राया चित्तौणे मारहिणा सद्धि' इत्यादि। .: सूत्रार्थ-(लए ण) त्यारपछी (से. पएमी राया चित्रोण सारहिणा सद्धि) ते अशी २० चित्र सास्थानी साथे (जेणेव केसि कुमारसमणे तेणेव उवागच्छई), oriiशिमा२ अभए ता त्यां गया. (केसिस्स कुमारसमणस्स अदूरसाम ते.
ठेचा एक वयासी) त्यां धनते शिशुभा२ श्रमथी सेवा स्थान मा, २द्या કે જે સ્થાન તેમનાથી વધારે દૂર પણ નહિ હતું અને વધારે નજીક પણ નહિ હતું त्यi SHt Sell or तो तभने । प्रमाणे यु. (तुम्भेण भते. आहोहिया अण्णजीविया) मईत! मातुशान-परभावधि २ता था४म छ.. भने आ५ प्रासु अषणीय मा.२ ४ अंडय ४३। छ। ? (तए ण केसीकुमारसमणे पएसि राय एवं वासी) त्यारे शोभा२ अंभो प्रदेशी ने भी प्रमाणे घु..
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