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राजप्रश्नायसो वदसि चित्र ! ?। हन्त स्वामिन् ! आधोऽवधिक्यं खलु वदामि अन्नजीवि. तत्त्व खलु वदामि । अभिगमनीयः ग्रल चित्र ! एप पुरुपः? हन्त ! स्वामिन ! अभिगमनीयः । अभिगच्छाम खलु चित्र वय एनं पुरुषम् ? हन्त ! स्मा मिन् ! अभिगच्छामः ॥ १७॥
टीका-तएण से चित्ते' इत्यादि-ततः खलु स चित्रः सारथिः प्रदेशिराजमेवमवादीत-हे स्वामिन् ! एप अयं-पुरोवती पार्थापत्यीयः पावस्वामि शिप्यपरम्परासंजातः केशी नाम कुमारश्रमण:=कुमारश्चासौ श्रमणश्च कुमारश्रमणः कुमारावस्थायामेव गृहीतसंयमः कीदृशोऽयमित्याह-जातिसंपन्नः यावत् यावच्छन्देन 'कुलसंपन्न.' इत्यादिविशेषणा नसर्वाणि पूर्वमूत्रोक्तानि संग्राह्याणि किंचित् ही न्यून है तथा ये प्रामुक एषणीय ही आहार लेते हैं मो क्या यह बात तुम सत्य कहते हो ? (हता सामी! आहोयिण वयामि, अण्ण जीवियत्त । क्यामि) हां, बामिन ! मैं सत्य कहता हूं कि इनका अवधिज्ञान परमावधि से किंचित् न्यून है और ये प्रामुक एपणीय ही आहार लेते हैं। (अभिगमणि उजे ण चित्ता ! एम पुरिसे) तो हे चित्र ! यह पुरुष अभिगमनीय है. अर्थात् परिचय करने के योग्य है (हता सामी ! 'अमिगमणिज्जे) हां स्वामिन् । ये आपके लिये अभिगमनीय हैं अर्थात् परि चय करने के योग्य हैं । (अभिगच्छामो ण चिना ! अम्ह एवं पुरिन) तो हे चित्र ! मैं इनके साथ परिचय करलु ? (हता सामी ! अभिगच्छामो) हां स्वामिन् ! आप इनके माथ परिचय करें।
इसका टीकार्थ इस मूला के जैसा ही है। केवल विशेषता अण्णजवियत्त' पद में है, इसका अर्थ तो मूलाथ में लिया जा चुका है
अड ४२ छ तो शुमा वात साथी छ ? (हता सामी! आहोहियण वयामि अण्णजीवियत्त ण चयामी) स्वाभिन ! हुई साथी' पात : अमन અવધિજ્ઞાન પરમાવધિ કરતાં થોડું કમ છે અને એઓ પ્રાસુક એષણીય આહાર अय ४२ छ. (अभिगमणिज्जे णचित्ता ! एस पुरिसे) तो है यिन:! मा पुरुष मलिगमनीय छ मेटमणमा ४२१॥ योग्य छ. (हता सामी ! अभिगमणिज्जे) હાં સ્વામિન ! એઓ આપના માટે અભિગમનીય છે એટલે કે ઓળખાણ કરવી એગ્ય છે. (अभिगच्छामो ण चित्ता! अम्ह एयपु रेस)ता उथिन भनी साथै सामा? (हंता सामी अभिगच्छामो) | स्वामिन त मेमनी साथे साजमा ४Nal.
__भा सत्रना टीआय भूसार्थ प्रमाणे १ छ. विशेषता ५५त 'अण्णजीवियत्त' પદમાં છે. આને એક અર્થ તે મૂલાઈમાં જ લખવામાં આવ્યું છે. અને બીજે