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शुद्ध
अशुद्ध
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काटुम्बक पुरुषान् सकङ्कठावतंसकं शरशतद्वात्रिंशतत्तूण दोनों और". स तारणवर युक्त
सा है યારે दृध्यक्षत दर्वाङ्करादीनि आरापण किया आयुध दसे यन्त्र केकयाद्ध जितश जियसत्तस्स सावत्थाए ० १०६
कौटुम्बिकपुरुषान् सकङ्कटावतंसकं शरशतद्वात्रिंशत्तण दोनों ओर स तोरणवरयुक्त ऐसा है જયારે दध्यक्षतदुर्वांकुरादीनि आरोपण किया आयुध पदसे यत्रैव केकयाई जितशत्रू जियसत्तस्स सावत्थीए विहरइ सू० तस्य श्रवस्त्या उपागच्छति आदि कुशलप्रश्नादि सारहि चाउग्घंटे जिमितभुक्तोत्तराग प्रतीच्छति
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श्रावस्या
उपाग ति
आद कुर्शल प्रमादि सारहि चउग्घंटे जिमितभुक्तात्तराग प्रतोच्छति
एव
एवं
ટીક્રાર્થ पञ्चविधन् जियम जेणव
ટીકાર્ય पञ्चविधान जियमाए जेणेव
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