________________
राजप्रश्नोयरस्ने वर्तय रथम् । ततः खलु स चित्रः सारथिः रथ परावर्त यति, यत्रैव मृरा.
नमुन्द्यान तत्रैवोपागच्छनि, प्रदेशिन राजानमेवमवादीत-एए खलु स्वामिन मृगवनमुद्यान, अत्र ग्बल अश्वानां श्रम काम सम्यग् अपन यामः। ततः खलु स प्रदेशी राजा चित्रं मारथिमेत्रमवादीत्-एवं भवत चित्र! |मु०१२५।।
टीका-'त एण से चित्ते' इत्यादि-ततः खल स चित्रः सारथिः कल्ये-आगामिनिदिन से मादुष्प्रभातायां प्रादुः-प्रकाशितं प्रभात यस्यां, तस्यां 'जन्या रात्री सत्याम, निकायमाने इत्यर्थः, अथ=पुन:फल्लोत्पलकमल. लते मे सरीरे परावतोहि रह) हे चित्र! मेरा शरीर थक रहा है, अतः तुम स्थ को वापिस लौटा लो (नए ण से चित्ते सारही रह परावोइ, जेणेव मियवणे उजाणे तेणेव उवागच्छइ) तब उस चित्र सारथिने स्थको लौटा लिया
और जहाँ मृगवन नामका उद्यान था उस ओर चल दिया (पएसि राय पर क्यासी)वहां पहुंच कर उसने प्रदेशो राजा से ऐसा कहा (एमाणसामी मियवणे उजाणे एत्थ ण यासोण सम किलाम सम्म अवणेमो) हे स्वामिन् ! यह मृगवन नामका उद्यान है यहां ठहरकर घोडों को श्रम को और ग्लानि को मैं अच्छी तरह से दर किये लेता है। (तए ण से पएसी राया चित्तं सारहिं एवं वयासी) तब वह प्रदेशी राजो चित्र सारथि से इस प्रकार बोलो (एवं होउ चिना) हे चित्र ! भले तुम ऐसा करो।
टीकार्थ-ईसके बाद दूसरे दिन चित्र सारथि प्रातः काल होते ही रात्रिकी समाप्ति होते ही-अपने घर से निकला ऐसा संबध यहां लगाना चाहिये. जब यह घर से निकला उस समयतक कमल विकसित हो चुके હે ચિત્ર! મારું શરીર શ્રમયુકત થઈ ગયું છે, એથી તમે રથને પાછા વાળી લો. (त एण से चिन्त' सारही रह परावत्ते' इ, जेणेव मियवणे उजाणे तेणेव ૩વ્રાજી) ત્યારે તે ચિત્ર સારથિએ રથને પાછો વાળી લીધું અને જ્યાં મૃગવન नामे धान तु ते त२५२थने यो. (पएसिं राय एयवयासी) त्यां पड़ांधीने तेणे अशी ने माम ४यु. (एस ण सामी मियवणे-उज्जाणे एत्थ ण आसाण सम किलाम सम्म अवणेमो) 3 सवामिन् ! मा भृगवन्नामे धान છે. અહીં રોકાઈને હું ઘોડાઓના થાકને અને ખિન્નતાને સારી રીતે મટાડી લઉં છું. (त एण से पएसी रोया चित्त' सारहिं एवं वयासी) त्यारे प्रदेशी रात यित्र सारथिने या प्रमाणे ४ह्यु. (एवं होउ चित्ता) यित्र ! सा त म भाभा २२.
ટીકાર્થ–ત્યારપછી બીજા દિવસે રાત્રી પૂરી થતાં તેમજ સવાર થતાં જે ચિત્ર સારથિ પિતાના ઘેરથી નીકળે. એ અર્થ અહીં કરે ઘટે છે. તે જયારે પિતાના