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________________ १४४ ... ..... गजप्रश्नीय - . .. M . ' ' अगिलाए णं सते! तुन्भे पएलिस्तरपणो धम्ममाइक्वेज्जाह, छदेणं भंते! तुझे पएलिस्स इण्णो धम्ममाइक्खेज्जाह । तएणं से केसी कुमारसमणे चित्तं सारहिं एवं वयाली आवीयाइ चित्ता ! जाणिस्तामो। तएणं से चित्ते सारही केसि कुमारसमणं बंदइ नमसइ जेणेव चाउ. पटे आलरहे तेणेव उवागच्छइ, चाउग्घट आसरह दुरूहइ, जामेव दि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए । सू० १२४ ॥ छाया-ततः वल स चित्रः सारथिः के शिकुमारश्रमण मेवमवादीत्-एवं खलु भदन्त । अन्यदा कदाचित् काम्बोजैः चत्वारः अश्वाः उपनयमुपनीताः ने मया प्रदेशिने राज्ञे अन्यदैव उपनीताः, तद् एतेन खलु भदन्त ! कार. णेल अह प्रदेशिनः राजान देवानुप्रियाणामन्ति के हव्यमानेयाम । तत मा खलु देवानुप्रियाः ! यूय प्रदेशिने राज्ञे धर्म माख्यान्तो ग्लायत, अग्लानाः , 'तएणं से चित्ते मारही' इत्यादि। - मन्त्रार्थ-(तए णं) इसके बादं (सें चित्तें मारही) वह वित्र सारथि (केसिकुमारसमण एवं वयासी) के शो कुमारश्रनग से ऐपा बोला (ए ग्वल भते ! अण्णाया. कयाई कंबोएहि चत्तारि आमा. उवणय उवणीया) हे भदन्त ! किमी एक समय कम्बोजदेशवामियोंने चार घोडे भेटरूप में भेजे थे (ते मए पएसिम्स रणो अण्ण याचेच उवणीया उसे मैंने प्रदेशी राजा के समक्ष भेट में उमी दिन दे दिया (नएए ण खलु भते ! कारणेण अह पमि राय देवाणुप्पियाण अंतिए हव्यमाणेस्सामि) अतः इस कारण से हे भदन्त ! मैं प्रदेशी राजाको आप देवानुप्रिय के पाम बहुत हो शीघ्र 'त एणं से चित्ते. सारही' इत्यादि। .... सूत्रा--(त एण) त्या२ पछी (से चित्ते सारही) त यिन सारथिये (केमिकुमारसमण एवं बयासी) शोभा श्रमाने प्रभारी विनती तां यु-(एवं खलु मते ! अण्णयो कयाई कबोएहि चनारि आसा उवणय उवणीया) महत ! मे मते शिवासी गाय या aisi प्रशी ने लेट भा४८या उता. (ते मएं पएसिस्स रणो अण्ण या चेव उवणीया) ते माने में अशी २० साभे लेट३५मा गतिशीधा छ. (त एएण खल भते ! कारणेण अह पामि राय देवाणुपियाण अतिएं हव्यमाणेस्सामि) મેથી હે “દંત! પ્રદેશી રાજાને આપી દેવાનુપ્રિયની પાસે જલ્દી જ ઉપસ્થિત કરીશું. :: : .:...
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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