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सुधिनी टाका. सू. १९२ सूर्यामदेवस्य पुत्रमवजीव प्रदेशिराजवर्णनम्
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भदन्त ! नैर्ग्रन्थ ं प्रवचनम्, प्रतीष्टमेतद् भदन्त ! नैर्ग्रन्थ प्रवचनम् इष्टप्रतीष्टमेतद् भदन्त ! नैर्ग्रन्थं प्रवचनम् यत् खलु यूयं वदथेति कृत्वा वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्थित्वा एवमवादीत्-यथा खलु देवाणुप्रियाणाम् अन्तिको बह उग्रा भोगा यावत् इभ्या इभ्यपुत्रास्त्यक्त्वा हिरण्यं त्यक्त्वा सुवर्ण म् एवं धनं धान्य बल वाहनं कोश' कोष्ठागार' पुरम् अन्तःपुर, त्यक्त्वा विषय बनाता हूं. हे मदन्त ! मैं इस निर्ग्रन्थ प्रवचन को स्वीकार करता हूं. हे भदन्त ! आप जैसा इस निर्ग्रन्थ मवचन का प्रतिपादन करते हैं, वह सही है . हे दन्त ! यह निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है. हे भदन्त ! यह निर्ग्रन्थ प्रवचन सन्देह रहित है। (इच्छियमेय सते ! निग्गथे पावणे, पडिच्छियमेय ते निग्गंथे पावणे) हे भदन्त ! यह निर्ग्रन्थ प्रवचन इष्ट है, - हे भदन्त ! यह निर्ग्रन्थ प्रवचन प्रतीष्ट है । ( इच्छियपाडिच्छियसेय' मते ! निग्गथे पावणे) हे भदन्त - ! यह निर्व्रन्थ प्रवचन इष्टप्रतीष्ट दोनोंरूप है, (जंण तुभेवदह, त्ति कट्टु वंदइ, नमसह) जैसा कि आप कहते हैं इस प्रकार कहकर उसने उसको वन्दना की नमस्कार किया. (वदित्ता नमसित्ता एवं वयासी) वन्दना नमस्कार कर फिर उसने ऐसा कहा (जहाण देवाणुवियोग अति वहवे उग्गा, भोगा जान इन्भा इन्भपुत्ता चिच्चा हिरण, चिच्चा सुवणं, एवं धणं धन्न बलं वाहणं कोस कोहागारं पुर अते उर) आप देवानुप्रिय के पास जिस प्रकार अनेक उग्र भोग यावत् इभ्य પેાતાની રુચિના વિષય ખના છું. હું ભટ્ટ!હું આ નિ પ્રથવચનને સ્વીકારૂ છું. હે ભદત ! આ નિગ્રંથ પ્રવચનનુ" આપ શ્રી જે પ્રમાણે પ્રતિપાદન કરી રહ્યા છે. अक्षेरशः यथावत् छे. हे लहंत ! या निर्भय अवथन सत्य छे, हे लहंत ! भा निर्यथ अवयन सौंदेड रडित छ. (इच्छियमेयं भंते ! निग्गथे पावयणे, पडिच्छियमेय मते निथे पात्रयणे) हे लढत ! या निर्भय अवयन दृष्टि छु, हे लঃ'त! या निर्यथ प्रवयन प्रतीष्ट छे. (इच्छियपडिच्छियमेयं भंते ! निग्गंथे पाचमणे) हे महंत ! या निर्यथ अवयन छष्ट भने प्रतीष्ट भन्ने छे. (जं णं तु दह, दिइ नमसह ) ? प्रभा न्यायश्री ही रह्या छ। ते प्रमाणे ४ छे. आम महीने तेथे बहना तेसन नमस्र (वेदित्ता नमसित्ता एवंवासी) वहना भन्न नमस्कार अरीने तेथे तेयो श्रीने या प्रमाणे उधु - (जहाणं देवापियाणं अतिए बहबे उगा, भोगा जाव इन्भा इन्भपुत्ता चिच्चा हिरणं. चिच्चा सुवणं. एवं भणं धन्न बलं वाहणं कोर्स कोडागारं पुरं अतेउर) याच हेवानुप्रियनी पासे नभ अथ, लोग यावत् हल्य भने स्यित्रो