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जीवाभिगमसूत्रे
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टीका -- "पुंसगवेदस्स णं भंते " नपुंसकवेदस्य खलु भदन्त । 'कम्मस्स' कर्मणः केवइयं कालं बंधठिई पन्नत्ताः कियन्तं कालं बन्धस्थितिः प्रज्ञप्ता कथितेति प्रश्नः भगवानाह - 'गोयमा ' इत्यादि 'गोयमा' हे गौतम! ' जहन्नेणं' जघन्येन "सागरोवमस्स' सागरोपमस्य 'दोन्नि सत्तभागा' द्वौ सप्तभागौ 'पलिओवमस्स' पल्योपमस्य 'असंखेज्जइभागेण ऊणगा' असख्येयनभागेनोनका हीना इत्यर्थः, सागरोपमस्य सप्तभागाः करणीयाः तेषु द्वौ भागौ तौ च पल्योपमस्यासख्येन भागेन हीनौ तथा “उक्कोसेणं" उत्कर्षेण "वीस सागरोवमकोडाकोडीओ” विंशतिः सागरोपम काटिकोट्यः "दोन्नि य वाससहस्साई अवाधा' द्वे च वर्षसहस्रे अबाधा द्विसहस्रवर्षैप्रमितोऽत्रबाधाकाल: "अवाहूणिया कम्महिई” अवाधोना— अवाधाकालेन हीना कर्मस्थितिः 'कम्मणिसेको' कर्मनिषेकः कर्मदलिकरचनेति ॥
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हैं. तथा-" उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ" उत्कृष्ट से २० बीस सागरोपम कोटा कोट की है | "दोन्निय वाससहस्साई अवाधा" इसमें दो हजार वर्ष की अवाधा है 'वाहूया " अवाधा काल से हीन कर्म स्थिति “कम्मणिसेगो" कर्म निषेक कर्म दलिको की रचना है. "णपुंसगवेए णं भंते ! कि पगारे पन्नत्ते" हे भदन्त ! नपुंसक वेद कैसा कहा गया है ? “ गोयमा ! महानगरदाहसमाणे पन्नत्ते" नपुंसक वेद महानगर के दाह के समान कहा गया है । क्यो कि समस्त भी अवस्थाओं में मदन दाह अर्थात् काम विकार महानगर को जलाने के जैसा ही होता है । इस वेद के उदय में स्त्री और पुरुष दोनो की अभिलाषा होती है. अत' इसे महानगर के जलाने वाले दाहके जैसे दाहवाला कहा गया है । “समणाउसो” हे श्रमण ! आयुष्मन् ! "सेत्तं णपुंसगा" इस प्रकार भेद और प्रभेदों को लेकर नपुंसकों का निरूपण किया गया है. नपुंसक प्रकरण समाप्त हुआ । सूत्र - १८
ध्यातमां लागथी मे सातियालाग प्रभाणुनी हे तथा "उक्कोसेण वीस सागरोवमकोडाकोडीओ" उत्सृष्टथी २० पीस सागरोपम छोडा छोडीनी छेदोन्निय वाससहस्साई अवाधा" भाभां में हन्तर वर्षांनी समाधा आज हे " अवाहूणिया कम्मट्ठिई" गणाधा अजथी हीन ४भ स्थिति “कम्मणिसेगो” उभं निषे:- उर्भ हसिओनी रचना छे. "णपुसगवेषणं भंते! किं पगारे पण्णत्ते" हे भगवन् नपुंसध्वे देवा अझरना उस छे ? या प्रश्नमा उत्तरमा प्रलु --" गोयमा ! महाणगरदाहसमाणे पण्णत्ते" नपुंसः वेह भडानगरना हा प्रभाऐना કહેલ છે. કેમકે—સધળા એવી અવસ્થાઓમાં મદન દાહે અર્થાત્ કામવિકાર મહાનગરને ખાળવા જેવેાજ હાય છે. આ વેદના ઉદયમાં સ્ત્રી અને પુરૂષ બન્નેની અભિલાષા થાય છે. तेथी तेने महानगरने माणवानाही नेवो ने हाई तेना वा हाडवाणी उडेस छे "समणा उसो" हे श्रम आयुष्मन् “सेतं णपुंसगा” या रीते लेह भने अलेहाने साने नपुं सोनुं निइयाशु કરવામા આવેલ છે. આ રીતે આ નપુંસક પ્રકરણ સમાપ્ત પ્રસ્॰ ૧૮૫