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________________ ~ ~ ~ -- --- - - - - - -- - - - - - - - - ~~~ - - ~ in wwwwwwwww-------- जीवाभिगमसूत्रे नाम् अत्र यावत्पदेन अप्कायिक तेजस्कायिक वायुकायिकैकेन्द्रियनिर्यग्योनिकनपुंसकानां संग्रहो भवति वेदियतेइंदियचउरिदिय पंचिंदियतिरिक्खजोणियणपुसगाणं' द्वीन्द्रियत्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकनपुंसकानाम् जलयराणं जलचरनपुंसकानाम् 'थलयराणं' स्थलचरनपुंसकानाम् 'खहयराणं खेचरनपुंसकानाम् “मणुस्सणपुंसगाणं मनुष्यनपुसकानाम् कम्मभूमिगाणं कर्मभूमिक मनुष्यनपुसकानाथ 'अकस्मभूमिगाणं अकर्मभूमिक मनुष्यनपुंसकानाम् अंतर दीवगाणय अन्तरद्वीपकामनुष्यनपुपकानां च एतेप मध्ये कयरे कयो हितो कतरे कतरेभ्य अप्पावा अल्पावा वहुयावा बहुका वा तुल्या वा तुल्या वा 'विसेसाहियावा विशेषाधिका वा भवतीति प्रश्नः भगवानाह गोयमा इत्यादि गोयमा हे गौतम ! 'सव्वत्थोवा' सर्व स्तोका-सर्वेभ्योऽल्पियांस. 'अहेसत्तमपुढवीणेरइयणपुसगा' अधः सप्तमपृथिवीनैरयिकनपुंसका:-सप्तमतमतमापृथिवीनैरयिकनपुसका भवन्ति सप्तमनारकनपुंसकापेक्षया, छटपुढवीणेरइय णपुंसगा असंखज्जगुणा षष्ठ पृथिवीनारक नपुसका असख्येयगुणा अधिका भवन्ति जाव दोच्च र्तियग्योनिक नपुंसकों के, वायुकायिक एकेन्द्रि तिर्यग्योनिक नपुसको के तथा “वेइंदिय तेइंदिय चउरिदिय पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिय णपंसगाणं" दोइन्द्रियतिर्यग्योनिक नपुंसको के तेइन्द्रियतिर्यग्योनिक नपुसको के चौइन्द्रियतिर्यग्योनिक नपुंसको के और पंचन्द्रियर्तियग्योनिक नपुसको के "जलयराणं" जलचर नपुंसको के "थलचराणं" स्थलचर नपुंसको के “खय राणं" "खेचरनपुसको के मणुस्स णपुसगाणं" मनुष्यनपुसकों के "कम्मभूमिगाणं" कर्म भूमिक मनुष्य नपुंसको के “अंतरदीव गाणय" अन्तर द्वीपक मनुष्य नपुंनसको के बीच में "कयरे कयरेहितो अप्पाचा, बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहियावा" कौन मनुष्यनपुसक किन मनुष्यमपुंसको से अल्प है ? कौन किनसे बहुत है ८ कौन किनसे तुल्य है ? और कौन किनसे विशेषाधिक हैं । इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु गौतम से कहते है-"गौयमा ! सव्वत्थोवा अहे सत्तम पुढवीनेरझ्यणपुंसगा” हे गौतम ! सबसे कम अध सप्तम पृथिवी के नैरयिक नपुंसक થાવત વનસ્પતિકાયિક એક ઇંદ્રિય વાળા તિર્થનિક નપુસકેમાં ચાવત પદથી અપકાયિક એક ઇંદ્રિયવાળા તિર્યંગેનિક નપુસકે મા તેજસ્કાયિક એક ઈદ્રિયવાળા તિર્યનિક નપું. सीमा वायुयि मेद्रिय वाण तिय-योनि नसभा “बेइंदिय तेइंदिय-चउरिदिय पंचिदिय तिरिक्ख जोणिय णपुंसगाण" मे द्रिय पाप, त्रय द्रियाणा तिय श्य. નિક નપુંસકેમાં ચાર ઈદ્રિયવાળા તિય ગેનિક નપું સકામાં અને પાંચ ઈદ્રિયવાળા તિર્ય नि नसभा 'जलयराण" य२ नसीमा "थलयशाणं" स्थाय२ नसभा “खह यराण" मेयर नसीमा "मणुस्सणसगाण" भनुष्य नसभा 'कम्मभूमिगाणं" - भूमिना मनुष्य नपुंसामा “अंतरदीवगाणं" मन मभूमिना मनुष्य नसभा 'कयरे कयरे हितोअप्पा वा बहुया वा तुल्लावा विसेसाहिया वा" ४या मनुष्य नपुस ४या मनुष्य નપુંસકે કરતાં અ૯પ છે? કેણ કેનાથી વધારે ? કોણ કોની બરાબર છે અને કોણ કોનાથી विशेष अधि४ छ ? गौतम स्वामीना मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४ छ - "गोयमा !
SR No.009335
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages690
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size45 MB
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