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________________ ક૨૮ जीवाभिगमसूत्रे प्रभापकप्रभाधूमप्रभातमानारकपृथिवीनां सग्रहो भवति तथा च नारकपृथिवीनां सप्तविधत्वात् तदाश्रित्य नारकनपुंसका अपि सप्तप्रकारका भवन्तीति । 'से तं नेरइयणपुंसगा' ते एतेउपर्युक्ता नारकनपुंसका निरूपिता इति । तिर्यग्योनिकनपुंसकान् निरूपयितुं प्रश्नयन्नाह—'से किं तं तिरिक्खजोणियणपुंसगा' अथ के ते तिर्यग्योनिकनपुसका इति प्रश्नः, उत्तरयति 'तिरिक्खजोणियणापुंसगा पंचविद्दा पम्नत्ता' तिर्यग्योनिकनपुसकाः पञ्चविधा. पंचप्रकारकाः प्रज्ञप्ताः कथिता इति । पंचविधत्वं दर्शयति 'तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा 'एगिदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा' एकेन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसका 'वेइंदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा' द्वीन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसकाः, 'तेइंदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा' त्रीन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुसका., 'चउरिदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा' चतुरिन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुसका', 'पंचिंदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा' पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसकाः, तथाचैकेन्द्रियद्वीन्द्रियत्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियपचेन्द्रियभेदात् नपुंसक यहाँ यावत्पद से बालुका प्रभा, पङ्कप्रभा धूमप्रभा और तमा प्रभा इन पृथिवीयों के नैयिक नपुंसक गृहीत हुए है । “से तं नेरइयनपुंसगा" यह नारक नपुंसकों का निरूपण है । तिर्यग्योनिक नपुंसकों का निरूपण इस प्रकार से है-"से किं तं तिरिक्खजोणियनपुंसगा" गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है । हे भदन्त । तिर्यग्योनिकनपुंसक कितने प्रकार के होते है ? उत्तर में प्रभु कहते है---हे गौतम "तिरि क्खजोणियणपुंसगा” तिर्यग्योनिक नपुंसक 'पंचविहा, पन्नत्ता' पांच प्रकार के होते है "तं जहा – 'एगिदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा बेइदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा' एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिकनपुसक, दो इन्द्रिय तिर्ययोनिक नपुसक, "तेदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा' तेइन्द्रियतिर्यग्योनिक नपुंसक "चउरिदितिरिक्खजोणियणपुंसगा" चौइन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुसक और "पंचिंदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा" पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुसक, अव गौतमस्वामी પૃથ્વીના રયિક નપુંસક યાવત્ અધઃ સપ્તમ પૃથ્વીના નૈરયિક નપુંસક અહિયાં યાસ્પદથી વાલકા પ્રભા, પંક પ્રભા, ધૂમપ્રભા, અને તમ પ્રભા આ પૃથ્વીના નરસિક નપુસકે ग्रहण ४२शया छ “से तं नेरइयनपुंसगा" मा प्रभाव नाय नसतु नि३५ छ। तिर्थयानि नसोनु नि३५ ४२वामा आवे छे. “से किं तं तिरिक्खजोणियणपुंसगा" गौतम स्वाभीये. प्रभुने ५७यु छ ?-- सावन तिय योनि नसो हैटया प्रा२ना डाय छ १ मा प्रतना उत्तरमा प्रभु गौतम स्वामीन हे छ है--'गोयमा ! गौतम ! “तिरिक्खजोणियणपुंसगा" निर्यश्यानि नपुस “पचविहा पण्णत्ता"-पांय प्रारना डोय छे “तं जहा" a पाय ४२ मा प्रभारी छे.- “एगिदियतिरिक्खजोणिय णपुंसगा, वेदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा" के न्द्रय वाणा तिर्य-योनि नस, मेंઈન્દ્રિય વાળા તિર્યનિક નસ Durxणय यान नपुस तेइ दितिरिक्खजोणियणपुंसगा" एए, पद्रिया वाण तिर्थयानि नपुस "चउरिंदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा" या२ द्रिय वाणा तिर्थयानि नपुंस अने' "पंचिंदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा" पांय न्द्रिय पाप तिर्थ
SR No.009335
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages690
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size45 MB
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