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________________ प्रमेयधोतिका टीका प्रति० २ स्त्रीणां स्त्रीत्वेनावस्थानकालनिरूपणम् ४२३ हैमवतैरण्यवत-हरिवर्षरम्यकवर्ष-देवकुरूत्तरकुर्वन्तरद्वीपकमनुष्यस्त्रीणां सर्वासां जन्मापेक्षया या यस्याः स्थिति स्तत्परिमितं तस्याः स्त्रीत्वेनावस्थानं कथनीयम् , सहरणापेक्षया जघन्यतोऽन्त मुहूर्तमवस्थानं वाच्यम् उत्कर्षतो यत्प्रमाणा यस्या उत्कृष्टा स्थितिस्तत् प्रमाणं देशोनया पूर्वकोट्याऽभ्यधिकं कृत्वा तस्या अवस्थानं वाच्यमिति संक्षपत इति भावः । अथ तदेव एकैकं कृत्वा क्रमेण दर्शयितुकामः सूत्रकारः प्रथमं हैमवतैरण्यवतक्षेत्रमनुष्यस्त्रीणामवस्थानं दर्शयति- हेमवयएरण्णवय' इत्यादि, 'हेमवयएरण्णवयअकम्मभूमिगमणुस्सित्थीणं भंते !' हेमवतैरण्यवताकर्म भूमिक मनुष्यस्त्रीणां भदन्त ! 'हेमवयएरण्णवयअकम्मभूमिग मणुस्सिस्थित्ति कालओ केवच्चिरं होइ' हैंमवतैरण्यवताकर्मभूमिकमनुष्यत्री इति कालतः कियचिरं भवतीति प्रश्नः, मनुष्य स्त्रियों का क्रम से अवस्थान काल दिखलाया जायेगा वह संक्षेप से इस प्रकार हैं-जैसे हैंमवत ऐरण्यवत, हरिवर्ष रम्यक वर्ष देवकुरू उत्तरकुरू और अन्तरद्वीप क्षेत्रों की समस्तमनुष्य स्त्रियो के जन्म की अपेक्षा से जिस स्त्री की जितने कालकी स्थिति होती है उस स्त्री का अवस्थान काल भी उतने ही कालका समझना चाहिये । और संहरण कीअपेक्षा जघन्य से अन्त. मुहूर्त का अवस्थान कहना चाहिए तथा उत्कृष्ट से जिस स्त्री का जितना उत्कृष्ट स्थिति का जो काल प्रमाण है उस कालप्रमाण को देशोन पूर्वकोटि से अधिक करके उस स्त्री का उतना अवस्थान काल समझ लेना चाहिये यह संक्षेप से इसका भाव हैं, अब सूत्र कार इसी विषय को क्रमसे एक एक करके दिखलाते हुए प्रथम हैंमवत ऐरण्यवत क्षेत्र की मनुष्य स्त्रियों का अवस्थान काल दिखलाते हैं "हेमवयएरण्यवय०" इत्यादि। "हेमवयएरण्णवयअकम्मभूमिगमणुस्सित्थीणं भंते ! हेमवयएरण्णवयअकम्मभूमिगमणुस्सिस्थित्ति कालओ केवच्चिरं होई" हे भदन्त ! जो हैमवत और ऐरण्यवत अकर्मभूमिको मनुष्य स्त्रियां है उनका अकम भूमिक मनुष्य દેવકુરૂ, ઉત્તરકુરૂ અને અંતરીપ આ ક્ષેત્રોની સઘળી મનુષ્ય સ્ત્રિના જન્મની અપેક્ષાથી જે સ્ત્રીની જેટલા કાળ ની સ્થિતિ હોય છે, તે સ્ત્રિને અવસ્થાનકાળ પણ એટલા જ કાળ ને સમજે જોઈએ અને સંહરણની અપેક્ષા એ જઘન્યથી અંતમુહૂર્તનું અવસ્થાન કહેવું જોઈએ. તથા ઉત્કૃષ્ટથી જે સ્ત્રીનું જેટલું ઉત્કૃષ્ટસ્થિતિનુ કાળ પ્રમાળ છે, તે પ્રમાણને દેશના પૂર્વકેટથી અધિક કરીને તે સ્ત્રીને તેટલે અવસ્થાનકાળ સમજવું જોઈએ. આ સંક્ષેપથી ભાવ કહ્યો છે. હવે સૂત્રકાર આજ વિષયને ક્રમથી એક એક કરીને બતાવતાથકા પહેલાં હૈમવત, ઐરણ્યવત क्षेत्रनी मनुष्य स्त्रियानो अवस्थान मतावे छे. 'हेमवय एरण्णवय" त्या "हेमवयपरण्णघय अकम्मभूमिगमणुस्सित्थीणभंते ! हेमवयएरण्णवय अकम्मभूमिगमणुस्सिस्थिति कालो केवच्चिरं होई" भगवन् ! 2 भक्त भने अरथ्यत मभ मूभिनी मनुष्य स्त्रिया छ, તેઓનું અકર્મભૂમિના સ્ત્રી પણુથી રહેવાને કાળ કેટલે કશે છે ? ઉત્તરમાં પ્રભુ ગૌતમ
SR No.009335
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages690
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size45 MB
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