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________________ । प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० २ त्रिविधप्रतिपत्तिनिरूपणम् ३६५ 'थळयरीओ दुविधाओ पन्नत्ताओ' स्थलचर्यो द्विविधा:- द्विप्रकारिकाः प्रज्ञप्ता -कथिताः, 'तं जहा तद्यथा 'चउप्पदीओ य परिस प्पिणीओ य' चतुष्पद्यश्च परिसर्पिण्यश्च ! 'से कि तं चउप्पदीओ' अथ कास्ताश्चतुष्पद्यः, चतुष्पदस्त्रोणां कियन्तो भेदा भवन्तीति प्रश्न', उत्तरयति- "चउप्पईओ चउविहाओ पन्नत्ताओ' चतुष्पद्य.--चतुष्पदस्त्रियः चतुर्विधाः प्रज्ञाप्ताः -कथिता इति । 'तं जहा' तद्यथा-'एगखुरीओ जाच सणप्फईओ' एकखुर्यो यावत् सनखपद्यः, अत्र यावत्पदेन द्विखुगाडी पदस्त्रीयोग्रहणं भवति, तथा च-एकखुरद्विखुरगण्डोपदमनरूपदस्त्रीभेदात् चतुष्पदस्त्रिय श्चतुष्प्रकारा भवन्तीति । 'से किं तं परिस प्पिणीओ' अथ कास्ताः परिसपिण्य इति प्रश्न , उत्तरयति-'परिसप्पिणीओ दुविहा पन्नत्ता' परिसर्पिण्यो द्विविधा:-द्विप्रकारिका प्रज्ञप्ता.-कथिताः 'तं जहां तद्यथा--'उत्पादिसप्पिणीओय भुयपरिसप्पिणीओ य उर परिगर्पिण्णश्च भुजपरिसपिण्यश्च पन्नत्ताओ” स्थल चरस्त्रियाँ दो प्रकार की होती हैं "तं जहा” जैसे "चउप्पदीओ य परिसप्पिणीओ य” चतुष्पदी खियाँ और परिसर्पिणी लियाँ "से कि तं चउप्पदीओं' हे भदन्त ! चतुष्पदास्त्रियो के कितने भेद हैं ? गौतम ! "चउप्पदीओ चउचिहामो पण्णत्ताओ" चतुप्प. दीस्त्रियां चार प्रकार की कही गई है "तं जहा" जैसे-“एगखुरीओ जाव सणप्फईओ" एक खुर वाली स्त्रियां यावत् सनखपदवाली स्त्रियाँ यहां यावत्पद से दो खुर वाली स्त्रियां और गण्डी पद स्त्रियां इन दो का संग्रह हुआ है अतः एक खुरी द्विखुरी गण्डीपदी और सनस्खपदी के भेद से चतुष्पद स्त्रियाँ चार प्रकार की हो जाती है। "से तिं परिमप्पिणीओ' हे भदन्त ! परिसर्पिणी स्त्रियां कितने प्रकार की होती है। गौतम ! "परिसप्पिणीओ दुविहा पन्नताओ" परिसपिणीस्त्रियां दो प्रकार की होती है "तं जहा" जैसे--"उरपरिसप्पिणीओ य भुयपरिसप्पिणीओ ' उर परिसर्पिणी जो छाती के बल से चलती हैं, भुजपरिसर्पिणी जो मुजाओ से दुविहाओ पन्नत्ताओ" स्थलय२ सिये। ये प्ररनी हाय छे. "तं जहा" ते । प्रमाणे छ "चउपपदीओ य परिलप्पिणीओ य" यतुही खियो, भने परिसणी सियो “से कि तं च उपदीओ" हे सगवन् यतुष्पहा स्त्रियाना टसा हो डसा छे. "गोयमा! चउपपदीओ चउचिहाओ पण्णत्ताओ' है गौतम ! यतुप्पही बिये। यार प्रा२नी हुवामा मावस छ "तं जहा" ते ! भारी छ. "पगखुरीओ जाव सणप्फ વ્યો” એક ખરી વાળી યાવતુ સનખપદવાળી બ્રિચ અહિયાં યાસ્પદથી બે ખરી વાળી સ્ત્રિ, અને ગંડીપદવાળી ઢિને સંગ્રહ થયેલ છે એટલે કે–એક ખરી વળી, બે ખરી पाणी, १५४ी सन सनम से महथी यतुष्पह रियो यार अरनी चाय छे. "से किं तं परिसप्पिणीओ" ३ सन् परिस (यो सा मारनी डेसी छे ? "गोयमा! परिसपिणीओ दुविद्या पण्णता" है गौतम ! ५रिसपी शिया में सारनी थाय छे. "तं जहा" ते मा प्रभार छ ‘उरपरिमपिपणीओ य भुयपरिसप्पिणीओ य" १२ परिसपी से रे। ७.तीन था या छेते तथा सुर परि
SR No.009335
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages690
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size45 MB
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