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________________ जीवा भिगमसूत्रे ३३८ 1 त्रीण्येव शरीराणि भवन्तीति । कानि त्रीणि शरीराणि तत्राह - 'वेउच्चिए' इत्यादि, वेउच्चिए तेयए कम्मए' वैकियकम् - लग्ध्यादिविक्रिया जनितमेकं शरीरम् तेनसम् कार्मणम् तथा च - वैकियतैजसकार्मणभेदात् त्रिविधं शरीरं देवानां भवतीति शरीरद्वारम् । अवगाहनाद्वारे -- 'ओगाहणा दुविहा' अवगाहना शरीरावगाहना देवानां द्विविधा - द्विप्रकारका प्रज्ञप्ता कथिता तद्यथा- 'भवधारणिज्जा य उत्तरवेउब्विया य' भवधारणीया प्रथमाऽवगाहना, द्वितीया उत्तरवैक्रियिकी च । 'तत्थ णं जा सा भवधारणिज्जा' तत्र तयो रवगाहनयोर्मध्ये खलु या सा-भव धारणीया शरीरावगाहना, 'सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं सा जघन्येनागुलस्या संख्येयभागम् अगुलासंख्येय भागप्रमाणेत्यर्थः । ' उक्को सेणं सत्तरयणीओ' उत्कर्षेण सप्तहस्तप्रमाणा भवतीत्यर्थः । उत्तरवेउब्विया जहन्नेणं अंगुल संखेज्जडभागं' उत्तर वैक्रियिकी शरीरावगाहना जघन्ये नाड्गुल संख्येय भागप्रमाणा भवति । 'उक्कोसेणं जोयणसयसहस्स' सरीरा" तीनही शरीर होते हैं । " वेउव्विए तेयए, कम्मए" वैक्रिय, तेजस और कार्मण लब्ध्यादि विक्रिया से उत्पन्न जो शरीर है वह वैकिय शरीर है । अवगाहनाद्वार में - इन देवों की शरीरावगाहना “ ओगाहणा दुविहा" के अनुसार दो प्रकार की होती है । "भवधारणिज्जा य उत्तरवेउच्त्रिया य" एक भवधारणीय शरीरावगाहना और दूसरी उत्तर वैक्रियिकी शरीरावगाहना “ तत्थ णं जा सा भवधारणिज्जा" इनमें जो भवधारणीय शरीरावगाहना है वह 'जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग " जघन्य से अंगुल के असंख्यातर्वे भाग प्रमाण होती है | और "उक्को सेण” “उत्कृष्ट से 'सत्त रयणीओ' सात हाथ प्रमाण होती है । "उत्तरवेउब्विया जहन्नेणं अंगुल संखेज्जइभागं" उत्तर वैक्रियिकी जो शरीरावगा - हना है वह जघन्य से अंगुल के सख्यातवें भाग प्रमाण है । और " उक्कोसेणं जोयणसयसहस्सं" उत्कृष्ट से एक लाख योजन प्रमाण है । " संहननद्वार में - " सरीरगा छण्डं , सरीरा” भलु अारना शरीरा होय हे "वेउत्रिए तेयप, कम्मए," वैश्यि, तैथ्स, अने કાણુ લબ્ધી લિગેરે વિક્રિયાથી ઉત્પન્ન થયેલ જે શરીર છે, તે નૈષ્ક્રિય શરીર કહેવાય છે. अवगाहनाद्वारभां - आा हेवाना शरीरनी अवगाहना "ओगाहणा दुविधा " मा धन प्रभा मे प्राश्नी होय छे ते मे अारो मा प्रमाणे समन्वा "भवधारणिज्जा य उत्तरवेउच्चिया य" मे भवधारिक्षीय शरीरावगाहना भने मील उत्तरवैडिय शरीरावगाहुना " तत्थ ण जा सा भवधारणिज्जा" तेमां ने लवधारणीय शरीरावगाहना छे ते "जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं" धन्यथी मांगणना असण्यातमां लागप्रभाणुनी होय छे अने "उक्को सेणं" सृष्टथी "सत्त रयणीओ” सात हाथ प्रभाणु होय छे. "उत्तरवेउग्विया जहणणं अंगुल संखेज्जइभाग" उत्तरवैिियडी ने शरीरावगाहना छे, ते धन्यथी मांगजुना सभ्यात लाग प्रभाणुवाजी हे सने "उक्कोसेणं जोयणसयसहस्स" उद्धृष्टथी
SR No.009335
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages690
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size45 MB
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