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________________ ૨૮૨ जीवामिगमसूत्रे इत्यादि, 'तं जहा ' तथथा - 'समचउरंससंठिया' समचतुरस्र संस्थिताः समाः यथावस्थितप्रमाणाऽविसवादिन्यश्वतस्रोऽस्त्रयश्चतुर्दिगविभागोपलक्षिताः चतुष्कोणशरीरावयवरूपाः यत्र तत् समचतुरनं संस्थानं प्रथमं तेन संस्थिताः । 'णग्गोधपरिमंडळसंठिया' न्यमोघपरिमण्डलसंस्थिताः न्यग्रोधवत् परिमण्डलं यस्य तन्न्यग्रोधपरिमण्डलम् यथा न्यग्रोधवृक्ष उपरि सम्पूर्ण - प्रमाणोऽघस्तु अल्पप्रमाणः, तथा यत् संस्थानं नाभेरुपरि संपूर्ण नाभेरधस्तु न संपूर्ण अपितु हीनं तत् न्यग्रोधपरिमण्डलं द्वितीयं संस्थानं तेन संस्थिताः । 'साइसंठिया' सादिसंस्थिताः, आादिरुत्सेधाख्यो नामेरधस्तनो देहभागः, आदिना - नामेरधस्तनदेहभागेन यथोक्तप्रमाणलक्षणेन सह वर्तते इति सादिः उत्सेध बहुलमित्यर्थः, 1 अत्र यद्यपि सर्वमेव शरीरमादिना सह वर्तते एव तथापि सादित्वविशेषणस्य सार्थक्यान्यथानुपपत्त्या विलक्षण एव कश्चित् प्रमाणलक्षणोपपन्नभादिरिह गृह्यते, अतएवोत्सेधबहुलमिति संस्थान होते हैं । जैसे- "समचउरंससंठिया" समचतुस्र संस्थान वाले १, "नग्गोधपरिमंडल संठिया " न्यग्रोध परिमण्डलसंस्थान वाले २, "साइसंठिया" सादि संस्थान वाले ३ " खुज्जसंठिया " कुब्ज संस्थान वाले ४ " वामण संठिया" वामन संस्थान वाले ५ "और हुंड संठिया" हुण्डक संस्थान वाले होते हैं, ६ जिस संस्थान में शारीरिक व्यवयव चतुष्कोण यथावस्थित प्रमाण के अनुसार होते हैं वह समचतुरस्र संस्थान है । जिस संस्थान में शरीर का आकार न्यग्रोध वट वृक्ष के जैसे ऊपर में तो सम्पूर्ण प्रमाणोपेत होता है और नीचे में हीन प्रमाण वाला होता है ऐसा वह संस्थान न्यामोघ परिमण्डल संस्थान है, इस संस्थान में नाभि से ऊपर तक तो अवयव सम्पूर्ण माकार वाले होते हैं और नीचे के अवयव तीन होते हैं |२| नाभि से नीचे का जो भाग हैं वह आदि है | इस नाभि से नीचे के देह भाग रूप आदि से जो शरीर का आकार युक्त होता है वह सादि संस्थान है । यद्यपि विचार किया जाय तो समस्त शरीर हो आदि से युक्त है । अतः संस्थानवाणा होय हे नेभडे - "समचउरंससंठिया" सभयतुरस्र संस्थानवाजा “नग्गोधपरिमंडलसंठिया" न्यग्रोध परिभउस संस्थानवाणा २, “साहसठिया" साहि संस्थानवाणा 3, “खुज्जसंठिया" पु०४ संस्थानवाणा ४, "वामण संठिया" वाभन स ंस्थानवाजा थे, गाने "हुंडर्सठिया" हुड सस्थानवाणा ६, होय छे ने संस्थानभां શરીરના અવયવ ચતુષ્કાળુ યાવસ્થિત પ્રમાણુ અનુસાર હાય છે, ‘તે સમચતુરસ સસ્થાન કહેવાય છે ૧ જે સસ્થાનમાં શરીરના આકાર ન્યગ્રોધ કહેતાં વડના ઝાડના જેવા ઉપર તેા સપૂર્ણ પ્રમાણવાળા હોય અને નીચે હીન-ઓછા પ્રમાણુવાળા હોય તેવા સસ્થાનને ન્યગ્રોધ પરિમ’ડલ” સસ્થાન કહેવાય આ સંસ્થાનમાં દુંટીથી ઉપર સુધીના અવયવેાતે સપૂર્ણ આકારવાળા હાય છે, અને નીચેના અવયવે! હીન-ન્યૂન હાય છે. ૨ નાલીથી નીચેના જે ભાગ છે, તે આદિ છે. આ નાભીથી નીચેના દેહ ભાગરૂપ આાથિી જે શરીરના આકાર યુક્ત હાય છે, તે સાદિક સ’સ્થાન છે, જે કે વિચાર કરવામાં આવે તે
SR No.009335
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages690
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size45 MB
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