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________________ जीवाभिगमसूत्रे ૨૬૦ विततपक्षिणः, विततौ- नित्यमसंकुचितौ पक्षौ विततपक्षी तो विधेते येषां ते विततपक्षिणः 'सर्वदा प्रसारितपक्षवन्तः इत्यर्थ इति । तत्र सर्वप्रथमं चर्मपक्षिणो निरूपयितुं प्रश्नयन्नाह - 'से किं तं' इत्यादि, 'से किं तं चम्मपक्खी' अथ के ते चर्मपक्षिण इति प्रश्नः, उत्तरयति - 'चम्मपक्खी' 'अणेगविहा पन्नता' चर्मपक्षिणोऽनेकविधाः प्रज्ञप्ता - कथिता इति । 'तं जहा ' तथा 'वग्गुली जाव जे यावन्ने तहप्पगारा' वल्गुलिनो यावत् ये चान्ये तथा प्रकारास्ते सर्वेऽपि चर्मपक्षिरूपतया प्रतिपत्तव्याः अत्र यावत्पदेनात्रापि प्रज्ञापनाप्रकरणं पटित व्यम् । एतेषा स्वरूपं लोकत एवावगन्तव्यमिति || ' से तं चम्मपक्खी' ते एते उपरि दर्शिता वल्गुलिप्रभृति पक्षिणश्चर्मपक्षिरूपतया ज्ञातव्या इति ॥ अथ लोमपक्षिणो निरूपयितुं प्रश्नयन्नाह - 'से किं तं लोमपक्खी' अथ के ते लोमपक्षिण इति प्रश्नः, उत्तरयति - 'कोमपक्खी अणेगविद्या पन्नत्ता' लोमपक्षिणोऽनेकपक्खी' तथा जिनके दोनों पंख हमेशा फैले हुए रहते है-कभी सकुचित नहीं होते है-वे विततपक्षी हैं इस प्रकार खेचर पक्षियों के सम्बन्ध में सामान्य रूप से जानकारी प्राप्त कर अब गौतम इसी विषय में विशेष रूप से जानकारी प्राप्त करने के लिये प्रभु से ऐसा पूछते हैं- "से कि तं 'चम्मपक्खी' हे भदन्त ! वे चर्मपक्षी कितने प्रकार के होते हैं-उत्तर में प्रभु कहते हैं 'चम्मपक्खी अणेगविद्या पन्नत्ता" हे गौतम ! चर्मपक्षी अनेक प्रकार के कहे गये हैं- "तं जहा ' जैसे - 'वग्गुलीजाव जे यावन्ने तढप्पगारा' वल्गु - यावत् और भी इसी प्रकार के अनेक जीव हो, यहा यावत्पद से 'जलोया अडिल्ला' भारुंडपक्खी जीवजीवा समुदवायसा कण्णत्तिया पक्खि विरालिया" इन प्रज्ञापना पटित खेचर जीवों का संग्रह हुआ है। इन सब का स्वरूप लोक से ही जानने के योग्य है 'से त्तं चम्मपक्खी " इस प्रकार का यह सब कथन चर्मपक्षियों के सम्बन्ध में कहा है । 'से किं तं लोमपक्खी' हे भदन्त ! लोमपक्षी कितने प्रकार है ? उत्तर में प्रमु ફેલાવેલી રહે છે તેઓ વિતતપક્ષી કહેવાય છે. આ રીતે ખેચર-આકાશમા ફરનારા પક્ષિયના સબધમાં સામાન્ય પણાથી સમજણુમેળવીને હવે ગૌતમ સ્વામી આ સબધમાં વિશેષ पायाथी समन्युभेजववा भाटे प्रभुने मे पूछे थे - "से कि नं चम्मपक्खी" हे लगवन् ते गर्भपक्षीय बेटा प्रहारना होय हे १ मा प्रश्नना उत्तरमा प्रलु हे छे है- "खम्म पrat अगवा पण्णत्ता" हे गौतम ! पक्षी अने प्रहारना उसा छे. "तं जहा' ते मा प्रभा . " वग्गूलो जाव जे यावन्ने तहप्पग्गारा" वगुती यावत् जीन्न प मना देवा भने वो होय ते मधा समलसेवा अडियां याव-पाथी “जलोया, अडिला, भारुं उपकली, जीवजीवा, समुदवायसा कण्णतिया पक्खिविरालिया" भी प्रज्ञापना भूत्रभां કહેલા પાઠ પ્રમાણે ખેચર-આકાશગામી ઈવાના સ ગ્રહ થયા છે. આ તમામ પક્ષીચેાનું स्त्र३य बाहव्यवहारथी समछ सेवु "से तं चम्मपक्सी" मा प्रभाषेनु' मा तमाम ईंधन ચમ પક્ષીઓના સબંધમાં કહ્યુ છે હવે લેામપક્ષીના સબધમાં ગૌતમ સ્વામી પૂછે છે है- "से किं तं लोमपवित्र" हे लगवन् खेोभपक्षी डेटा प्रहारना उसा छे, ? या प्रश्नना
SR No.009335
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages690
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size45 MB
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