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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० १ अकायिकानां शरीरादिद्वार निरूपणम् १४३. अनेकविधाः–अनेकप्रकाराः प्रज्ञप्ताः - कथिता इति । अनेकविधत्वमेव दर्शयति- 'तं जहा ' इत्यादिना 'तं जहा ' तथथा - 'ओसा हिमे जाव जे यावन्ने तहप्पगारा ते समासओ दुविहा पन्नत्ता' अवश्यायो हिमं यावद् येचान्ये तथाप्रकारास्ते समासतः - संक्षेपेण द्विविधाः - द्विप्र कारकाः प्रज्ञप्ताः - कथिताः - 'तं जहा' तथथा – 'पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य' पर्याप्त काश्चापर्याप्तकाश्च । अत्र यावत्पदेन - 'महिया करगे हरत सुद्धोदए सीओदए खट्टोदए खारोदए अविलोदए लवणोदए वरुणोदए खोरोदए खोभोदए रसोदए' एतेषां संग्रहः कर्त्तव्यः, तत्र 'ओसा' अवश्यायः 'हिमे' हिमम् - ( बरफ ) इति लोक प्रसिद्धम्, 'महिया' महिका पौषादि मेघगर्भमासेषु वाष्पवत्सूक्ष्मवर्षणम् 'करगे' कटको घनोपलः (ओला) इति लोकप्रसिद्धः 'हरतणू' हरतनुः यः खलु पृथिवीमुद्भिद्य शाल्याद्यड्कुरतृणामादिपु बद्धो विन्दु यिकजीव अनेक प्रकार के कह गये है ' ॥ 'तं जहा' जैसे- 'ओसा हिमे जाव जे यावन्ने तहप्पगारा ते समासओ दुविधा पन्नत्ता' अवस्थाय - ओस, हिम, यावत् इसी प्रकार के और भी जो है वे सब बादर अप्कायिकजीव हैं--ये बादर अकायिकजीव संक्षेप से दो प्रकार के हैं - 'तं जहा' - जैसे 'पज्जत्तगा य अपज्जत्तगाय' पर्याप्तक और अपर्याप्तक यहाँ 'ओसाहिमे जाव' में जो यह यावत्पद आया है उससे 'महिया, करगे, हरतणू सुद्धोदए, सीओदर, खट्टोदए, खारोदए, अंबिलोदए, लवणोदए, खोरोदए, खोओदए, रसोदए' इन सब अप्कायिको का संग्रह हुआ है, इनमें अवश्याय नाम ओसका है, हिमनाम बर्फ का है, मेघ पौषादि गर्भ मास में बाप-भाप के जैसी जो सूक्ष्मवर्षा होती है उसका नाम महिका (धूंभर ) है ओले का नाम करक है जो पृथिवी को फोड़कर शाली आदि के अंकुर पर और तृणादिके अग्रभागपर जो विन्दु जैसा बंध जाता है उसका नाम हरतनु है, मेघ से वर्षा हुआ गौतम ! महर मच्छामि भवा भने अझरना उडेला छे “तं जहा " ते मा प्रभाले छे "ओसा हिमे जाव जे यावन्ने तह पगारा ते समासभ दुविहा पन्नत्ता" व्यवस्थाय —એસ, હિમ, ચાવત્ એ પ્રમાણેના ખીજા પણ જેએ છે, તે બધા ખાદર અધૂકાયિક જીવા छे. मामाहर गायिका संक्षेपथी मे अझरना छे, "तं जहा', मट्ठे "पज्जत्तगाय अपज्जन्त्तगाथ" पर्या ने अपर्याप्त महियां "ओसा हिमे जाव" मा वाउयभां क े या यावत् यह आवे छे. तेनाथी "महिया, करगे, हरतणू, सुद्धोदप, सीओोदप खट्टोप, खारोदर, अविलोदर, लवणोदए, खीरोदर, खोओदए, रसोदए,” भा तभाभ अयूयिष्ठोनो સંગ્રહ થયા છે. તેમા અવશ્યાય એટલે એસ, હિમ એટલે ખફ થાય છે . મેઘને પાષ વિગેરે ગણ માસમાં ખાÝ—માફ વરાળના જેવા ઘુમ્મલ જે સૂક્ષ્મ જીણા વર્ષાદ થાય છે ઘુમ્મલા તેને મહિકા કહે છે, આલા-વર્ષાદ સાથે જે કરાશે પડે છે તેને કરકા કહે છે, શાલી વિગેરેના અકુર, ઉપર અને તૃણુ-ઘાસ વિગેરેના અગ્ર ભાગ પર જે પાણીના ટી*પા જેવું ખની જાય
SR No.009335
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages690
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size45 MB
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