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________________ मानापमेण पहुलः, तर-उत्पशनम् मुग्धमनशनस्य समीपागतपिनक्षणमयात् तल वञ्चनाकरणम् पचन-प्रतारणम् , गाया परवद्धिः , नितिः मायामाद नार्थ मायान्तरकरणम् , पपटम्येपादिविपर्ययकरणम् , रुटम् तुगतोलनका दीनामन्यथाकरणम् , ' साइ' देशी गमोऽयम् , विश्वासामार, एषां समयोगों व्यवहारः स पर याला प्रचुरो यस्प सा, 'निस्सीले ' निःशीशीलरहित', 'निधए ' निता अणुताति, 'निग्गुणे' निर्गुण =गुगततरहितः, निप चक्खाणपोसहोवकासे' निष्प्रत्यारपान पीपधोपनामा - प्रत्यार यानपापोप वासरहितः यहण दुपयचउपयमियपसुविखमरीसिमाण धायाए वहाए उच्छाय णाए' रहना द्विपदचतुष्पदमृगपशुपतिसरीठपाणा घानाय, वाय-सामान्य हार इसके पास प्रचुर था। भोलेजनों के वचन करने में प्रवृस हुआ वचक जन जय पास में आये हुए जनको भय से नहीं ठगता है इस का नाम उत्कचन है। प्रतारण (ठगना) करना इसका नाम वचन । दूसरों को वजन करने की धुद्धि का नाम माया है। अपनी मायाचारी को छिपाने के लिये जो दसरी मायाचाररूप क्रिया करनी होती है इस का नाम निकी है। चेप आदि के परिवर्तन करने का नाम कपट है। तराजू एव तोलने आदि के यारों को कमती बढती रखना इसका नाम कृट है। "साइ" यह देशीय शन्द है। इसका अर्थ विश्वास का अभाव होता है। यह निःशील था-शीलरहित था-नित था-व्रत रहित था, निर्गुण था-गुण रहित था, "प्रत्याख्यान और पौषपोपवास से वर्जित था "वण दपयचउपयमियपसपक्खिसरीसिवाण घायाए वहाए उच्छायणाग अधम्मके समुहिए" अनेक द्विपद, चतुष्पद, "" પુષ્કળ પ્રમાણમાં હતો ભેળા માણસોના વચનમાં પ્રવૃત્ત થયે વાચક જયારે પાસે આવેલા માણસને બીકથી ગત નથી તેનું નામ ઉકચન છે કતારણ ! નામ વચન છે બીજા માણસને ઠગવાની બુદ્ધિનું નામ માયા છે પિતાના માયાચારીને છુપાવવા માટે જે બીજી માયાચાર રૂપ ક્રિયા કરવામાં આવે છે તેનુ નામ નિકૃતિ છે વેશ વગેરે બદલવુ તે કપટ કહેવાય છે ત્રાજવા તેમજ જોખવાના વજનેને હલકા અને ભારે કરવા તેનું નામ ફૂટ છે “ સાઈ” આ દેશીય શબ છે તેને અર્થે વિશ્વાસને અભાવ હોય છે તે નિ શીલ હતે-શીલ રહિત હતા, નિર્વત વત રહિત હસે નિર્ગુણ હત-ગુણ રહિત तो प्रत्याभ्यान भने पोषापवासथी पति sो “बहूण दुपयच उप्पय मियपसपस्विमरीसिवाण पायांए वहाए - उच्ायणाए
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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