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________________ - माताधर्मकथा ज्यन्ते, तेषां कौशेयरखाणां 'रेशमीन' ति मापा पगिद्धानां च तथाअन्येया चस्पर्शेन्दिपमापोग्पाणां द्रव्याणां शकटीगास्ट मरन्ति, मृत्वा शस्टीशाकई योनयन्ति, योजयित्वायर गम्मीरमगाम्भीरनामक पोतस्थान तत्रोपागाउन्ति, उपागत्य शकटीशाकट मोचयन्ति, मोचपिया 'पोयरहण' पोतवहनम्नीका सज्जयन्ति, सज्जयित्वा तेषाम् 'उगिन्द्राण' उताना श्रेष्टाना शन्दम्पर्गरसरूप गन्धाना काष्ठस्य च पानीयस्य च तन्दुलाना च 'सामियम्स य' समीतस्यशिलाओं को, एस गो को-रेशमी वस्त्रों को, तथा और भी स्पर्शन इन्द्रिय को आनन्द देने वाली वस्तुओं को उन लोगो ने गाडी ओर गाडों में भरा। (भरित्ता सगढीसागढ जोएति, जोहत्ता जेणेव गभीरए पोयट्ठाणे तेणेव वागमति, उवागरिता मगढीसागट मोएति, मोइत्ता पोयवरणे सज्जेति, सजित्ता तेसि उकिहाण सहफरिसरम रूवगधाण कहप्स य तणस य पाणियस्स य तदुलाणय समियरस य गोरसस्स यजाव अन्नेसिंच पण पोयवाणपाडग्गा ण पोयवल भरेंति ) भरकर के फिर उन लोगों ने गाडी और गाडौं को जोत दिया। जोतकर के फिर वे यहाँ आये-जहां गभीर नाम का पोतस्थान था-यद रगाह था । वहा आकर के उन लोगों ने गाड़ी और गाडों को ढील-रोक दिया। और फिर नौकाओंको सजाया-तैयार किया। और तेयार करके बादमें उन्होंने उन श्रेष्ठ शब्द, स्पर्श, रस, रूप, एवं गधोंको काष्ठको तृण को पानीय द्रव्य को तदलों को, गेहूँ के आटे को, गोरस घृतादिक-को લીસી શિલાઓને, હસ ગ-રેશમી વસ્ત્રોને તેમજ બીજી પણ ઘણી પશે ન્દ્રિયને સુખ પમાડે તેવી ઘણી વસ્તુઓને તે લેકેએ ગાડી અને ગાડામાં ભરી (भरित्ता सगडीसागड जोएति, जोइता जेणेव गभीरए पोयट्ठाणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सगडीसागड मोएति मोइत्ता पोयवहण सजीत, सज्जिता तेर्सि उक्किट्ठाण सफरिसरसरूपगधाण बहस य तणस्स य पाणि यस्स य तदुलाण य समियस्स य गोरमस्स य जाब अन्नेसि च पहूण पोयवहण पाउग्गाण पोयवहण भरति) ભરીને તે લેકેએ ગાડી અને ગાડાઓને છેતર્યા તરીકે તેઓ ત્યાથી જ્યા ગભીર નામે પિતસ્થાન (બ દર) હતુ ત્યા આવ્યા ત્યા આવીને તે લોકેએ ગાડી અને ગાડાઓને છોડી મૂક્યા અને ત્યારપછી નૌકાઓને સુસજ્જિત કરી સુસજ્જિત કર્યા બાદ તેમણે તે ઉત્તમ શબ્દ, સ્પર્શ, રસ, ३५ भने गधोन, आ४न, धासन, पाद्रव्यान, तदु (1)२,
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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