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________________ D ૧૨૮ भदन्त ! कृष्ण वासुदेवमुत्तमपुरुष पश्यामि तत खलु मुनिगणतोऽईन कपिलं वासुदेयम् एमवादी-नो सलु हे देशानुमिय ! एव भूत या, भवति वा मविष्यति वा यत् खलु अईन् अईन्त पश्यति, चक्रवर्ती वा चक्रवर्तिन पश्यति घलदेवो वा बलदेव पश्यति वासुदेवो पा यासदेव पश्यति, तथा ऽपि च खलु त्व अह भते ! कण्हं वासुदेव उत्तमपुरिसं मरिसपुरिस पासामि ) इस प्रकार सुनकर उस कपिल वासुदेव ने मुनि सुव्रत प्रभु को बदना की-नमस्कार किया वदना नमस्कार करके फिर उनसे इस प्रकार कहा -हे भदत ! मैं जाता है और उत्तम पुरुष उन कृष्णवासुदेव से कि जो मेरे जैसे पुरुप हैं-वासुदेव पद के धारक है-जाकर मिलता। (तपण मुणि सुब्चए अरहा कपिल वासुदेव एव चयासी) तथ मुनि सुव्रत प्रभु ने उस कपिल वासुदेव से इस प्रकार कहा-(नो खलु देवाणुप्पिया! एव भूय वा ६ जपण अरहतो, वा अररत पासह, चकवट्टी वा चक्क वर्टि पामइ, बलदेवो वा, पलदेव पासइ, वासुदेवो वा वासुदेव पासइ) हे देवानुप्रिय ! ऐसी यात न हुई है, वर्तमानमें न होती है और न भवि प्यत्काल में होनेवाली है कि जो एक तीर्थकर दूसरे तीर्थकर से मिल, एक चक्रवर्ती दूसरे चक्रवर्ती से मिले, एक यलदेव दसरे यलदेव से मिल, एक वासुदेव दूसरे वासुदेव से मिलें। ऐसा सिद्धान्त का नियम है कि एक तीर्थकर का दूसरे तीर्थकर से कभी भी मिलाप नहीं होता है। ण अहमते ! कण्ह वासुदेव उत्तमपुरिस सरिसपुरिस पासामि) । આ પ્રમાણે સાભળીને તે કપિલવાસુદેવે મુનિસુવ્રત પ્રભુને વદન તેમજ નમન કર્યા વદન અને નમન કરીને તેમની સામે આ પ્રમાણે વિનતી કરતા કહ્યું કે હે ભરત! હુ જાઉ છુ અને જઇને મારા જેવા તે ઉત્તમ પુરૂષ કૃષ્ણ वासुदेव ४२॥ वासुदेव पहन समाव-तभन भन छु (तएण मुणि सुव्वए भरहा कबिल वासुदेव एव वयामी) त्यारे भुनिसुव्रत प्रभु arte વાસુદેવને આ પ્રમાણે કહ્યું કે – (नो खलु देवाणुप्पिया ! एव भूय वा ३ जण अरहतो वा अरहत पासह, चक्कवट्टी वा चक्कट्टि पासइ, परदेवो वा, बलदेव पासइ, वासुदेवो वा वासुदेव पासइ) હે દેવાનુપ્રિય! એવી વાત કોઈ પણ દિવસે સ ભવી નથી, વર્તમાનમાં પણું સ ભવી શકે તેમ નથી અને ભવિષ્યકાળમાં પણ સ ભવી શકશે નહિ કે એક તીર્થંકર બીજા તીર્થ કરને મળે, એક ચક્રવતી બીજા ચક્રવર્તીને મળે, એક બળદેવ બીજા બળદેવને મળે આ જાતને સિદ્ધાન્તને નિયમ છે કે એક
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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