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अनगारधर्मामृतवर्षिणी टी० अ० १६ द्रौपदीचरितनिरूपणम्
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दोवईदेवी पउमनाभ रायं एव वयासी - किष्णं तुम देवाशुप्पिया । न जाणसि कण्हस्ल वासुदेवस्स उत्तम पुरिसस्स विष्वियं करेमाणे मम इहं हव्वमाणेसि, तं एवमवि गए गच्छहण तुम देवाणुपिया । पहाए उलपडसाडए अवचूलगवत्थणियत्ये अतेउरपरियालसपरिवुडे अग्गाइ वराइं रयणाई गहाय मम पुरओ काउं कण्ह वासुदेवं करयलपायपडिए सरणं उवेहि, पणिवइयवच्छला ण देवाणुप्पिया । उत्तमपुरिसा, तएणं से उसनाभे, दोवइए देवीए एयमह पडिसुणेइ पडिसुणित्ता हाए जाव सरणं उइ उवित्ता करयल० एवं वयासी - दिवाण देवाप्पियाण इड्डी जाव परक्कमे तं खामेमि णं देवाणुपिया । जाव खमंतु णं जाव णाह सुज्जोर एवं करणयाएत्तिकहु पंजलिवुडे पायवडिए कण्हस्स वासुदेवस्स दोवइ देवि साहित्थि उवणेइ, तरण से कण्हे वासुदेवे पउमणाभ एव वयासी ह भो पउमणाभा । अप्पत्थियपत्थिया४ किण्ण तुम ण जाणसि मम भगणि दोवइदेवी इह हव्यमाणमाणेत एवमचि गए णत्थि ते ममाहितो इयाणि भयमस्थि तिकट्टु पउमणाभं पडिविसजेइ पडिविसज्जित्ता दोचइ देवि गिन्हइ गिन्हित्ता रह दुरूहेइ दुरुहित्ता जेणेन पच पडवे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता पचपहं पडवाणं दोवइ देवि ताहत्थि उवणेइ, तएण से कण्हे पचहि पंडवेहि सहि अप्पछट्टे छहि रहेहि लवणसमुद्द सझ मज्झेण जेणेत्र जवृद्दीवे दोघे जेणेव भारहे वासे तेणेव पहारेत्थ गमणाए ॥ सृ० २९ ॥