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पणति "पाणि-ससुसेन गिधा भातक्षि:-आमा' ति कस्ता आध रुते' आशुरुषतः शीध्र गोधाविष्ट, पामपादन पादपीठ ' अशुक्मा' मनुका मति, अनुक्रम्प कुन्ताग लेग-पगिक 'पणागर' अर्पपनि । अर्पयित्वा यावत् 'फर' प्रत्यानयन काव्यमागाः । नन गल ग पानामो दारुकेग सार थिना एवमुक्त' सन् भनुमणी : शोधासात, प्रियालिमा रेखात्रययुक्ता भुकुटि-'निडाले लाटे-गालपदेगे 'साढ' गहत्य-उन्नीय, एवमवादादनो अर्पयामि पलु अब दे देशानुपिय मास्य नाटेवम्य द्रौपदीम् , एष खलु आसपर युद्धपनो निगमलामि युद्धाय पहिनि मरामि इतिकला के कर्तव्य अनुमार मेने यर आपको नमस्कार किया है जय विजय आदि शब्दों द्वाराबधाई दी है-परन्तु मेरे स्वामीकी उनके मुखसे आपके लिये जो आज्ञा दी गई है यह दुमरी है-और घर इस प्रकार है-इस प्रकार अपने मुख से करकर घर शीघ कोर से भर गया, और वामपाद स उसके पादपीठ पर चढ गया। (अपमित्ता) चढकर फिर (कतिग्गण लेर पणामह) फिर उसने उसके लिये कुन्त के अग्रभाग से पत्रिका अर्पित की। (पणामित्ता जाव कृव हत्यमागए) पत्रिका अपित करक यावत् कृष्णवासुदेव पाचो पाटों के साथ यरा द्रौपदी देवी को वापिस लेने के लिये रब्ध-अभी अभी-आये है यह मर समाचार उसे सुना दिया। (तरण से पउमणाभे दानएण सारहिणा एवघुत्ते समाणे आलु रुत्ते त्तिवलि भिउडि निडाले सारटु एच क्यासी णो अप्पिणामि " अह देवाणुप्पिया ! कण्डस्म वासुदेवस्स दोवई, एस ण अह सयमय વિનોપચાર માટે નમસ્કાર કર્યો છે તેમજ જય વિજય વિજય શબ્દો દ્વારા તમને વધામણ આપી છે પરંતુ મારા સ્વામીએ તેમના મુખથી તમારે મા જે કઈ આજ્ઞા આપી છે તે કઈક બીજી જ છે અને તે આ પ્રમાણે છે કે, દૂત આમ કહીને એકદમ ક્રોધમા લાલચોળ થઈ ગયો અને ડાબા પગલા तेना पाहासन 6५२ यदी गयो ( अवक्कमित्ता) यदी (कोतग्गेण लेह पणा मइ) तेरी ने त (मा) 11 माथी पत्रिी मापी (पणामित्ता जाव कुर हव्वमागए ) पत्रिता मापान यावत ०५-वासुदेव पाय पाउ સાથે અહીં દ્રૌપદી દેવીને લેવા માટે અત્યારે આવ્યા છે આ જાતના બધા સમાચારે તેને કહી સંભળાવ્યા
(तएण से पउमणामे दारुयेण सारहिणा एव वुत्ते समाणे आमुरुत्ते ति पलि भिउडि निडाले साइटु एव वयासी-णो अप्पिणामि