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मगारधर्माताणी टी० १० १६ प्रौपदीचरितनिरूपणम् ઇટર देवीए मग्गणगवेसणं करित्तए, तएणं से कण्हे वासुदेवे कोंती पिउच्छि एव वयासी-जं णवरं पिउच्छा। दोवइए देवीए कत्थइ सुई वा जाव लभामि तो णं अहं पायालाओ वा भवणाओ अद्धभरहाओ वासमंतओ दोवई साहत्थि उवणेमित्तिक कोंती पिउत्थि सकारेइ समाणेइ जाव पडिविसज्जेइ, तएणं सा कोंती देवी कण्हेणं वासुदेवेणं पडिविसजिया समाणी जामेव दिसि पाउ० तामेव दिसि पडिगया ॥ सू० २५ ॥
टीका-'तएण से' इत्यादि । ततः खलु स युधिष्ठिरो राजा ततो मुहूर्तान्तरे प्रतिबुद्धः सन् द्रौपदी देवी पार्वे 'अपासमाणो ' अपश्यन् अनवलोकयन् शयनीयादुत्तिष्ठति, उत्याय द्रौपद्या देव्या सर्वतः समन्ताद् मार्गणगवेपण करोति, कृत्वा द्रोपद्या देव्या ' कत्थइ ' कुत्रापि 'सुइ' झुर्ति सामान्यवृत्तान्त वा, 'सुइ ' क्षुति छिक्कादि शब्द वा ' पत्ति' प्रवृत्तिं वा विशेपटत्तान्त अलभमानो
तण्ण से जुहिहिल्ले राया इत्यादि ॥ टीकार्य-(तग्ण) इसके बाद (से जुरिडिल्ले राया) वे युधिष्ठिर राजा (तओ मुहुत्ततरस्स ) एक मुहूर्त के याद (पडिबुद्ध समाणे) जगे-और जगकर उन्होंने (दोवई देवी) द्रौपदी देवी को (पासे अपासमाणो सयणि जाओ उद्देइ, उहित्ता दोवईए सव्वओ समतो मग्गणगवेसण करेइ) अपने पास जर नही देखा तो वे अपनी शय्या से उठे और उठकर द्रौपदी देवीकी सयओरसे उन्होंने मार्गणा गवेषणाकी (करित्ता दोवईए देवीए कत्यइ सुइ वा खुइ वा पत्ति वा अलभमाणे जेणेव पडराया
'तएण से जुहिडिल्ले राया ' इत्यादि ।
साथ-(तएण ) त्यारपछी ( से जुहिटिल्ले राया) ते युधिष्ठिर रात (तओ मुहुत्त तरस्स) मे भुत माह (पडियुद्धे समाणे ) श्य! मने जाने तेभए (दोवई देवी ) द्रौपट्टी वान, ___ (पासे अपासमाणो सयणिज्जाओ उठेद, उद्वित्ता दोवईए सबओ समता मगणगवेसण करेइ)
જ્યારે પિતાની પાસે જઈ નહિ ત્યારે પિતાની શય્યા ઉપરથી ઊભા થયા અને ઊભા થઈને દ્રૌપદી દેવીની ચેમેર માર્ગ પણ કરી
(करित्ता दोवईए देवीए कत्थइ सुइ वा सुइ वा पत्तिं वा अग्भमाणे