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________________ अनगारधामृतपाणी टोका अ० १६ द्रौपदीचरितनिरूपणम् ४४९ त्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ करित्ता वदइ णमसड महारहेण आसणेणं उवणिमतेइतएण से कच्छष्टनारए उदगपरिफासियाए दभोवरिपच्चत्थुयाए भिसियाए णिसीयइ, णिसीयित्ता पडुरायं रज्जे जाव अतेउरेय कुसलोदतं पुच्छइ,तएण से पंडराया कोंतीदेवी पच य पडवा कच्छल्लणारय आढति जाव पज्जुवासंति, तएणं सा दोवई कच्छल्लनारय असजय अविरय अपडिहयपचक्खायपावकम्मे तिकट्ट नो आढाइ नो परिचाणइ नो अब्भुहेइ नो पज्जुवासइ ।। सू० २४ ॥ टीका-'तपण ते' इत्यादि । ततस्तम्तदनन्तर खलु ते पञ्चपाण्डवा द्रौपद्या देव्या सा कहाल् ि ' कल्याफल्ये प्रतिदिवस वारवारेण उदारान् भोगभोगान् यावद् गुमाना विहरन्ति । तत खलु स पण्ड राजाऽन्यदा कदाचित पञ्चभिः पाण्डवैः कुन्त्या देव्या द्रौपद्या देव्या च सार्ध ' अतो अतेउरपरियाल' 'तएण ते पच पडवा' इत्यादि । टीकार्य-(तएण) इसके बाद (ते पच पडवा) वे पांचों पाउब (दोवईए देवीए) द्रौपदी देवी के साथ-(कल्लाकल्लिं वारवारेण ओराला भोग भोगाइ जाव विहरति-ताण से पट्टराया अन्नया कयाई पचर्ति पडवेहिं कोंतीए देवीए दोवईए देवीए य सद्धिं अतेउरपरियालसद्धिं मपरिखुडे सीहासणवरगए यावि विरट) प्रतिदिन पारी बारी से उदारकाम भोगों को भोगने लगे एक दिन की बात है-कि पाहु राजा किसी एक समय पाचों पांडवों एव अपनी पत्नी कुन्ती देवी और पुत्रवधू द्रौपदी Axt-" तपण ते पर पहरा इत्यादि st-(तएण ) त्या२५जी (ते पच पडवा) ते पाय 413 (ोवई देवोए ) ही वीनी साथै (ल्लाकलिल वारवारेण ओरालाइ भोगभोगाड जाब विहरनि-तएण से पडाया अन्नया कयाई पाई पडवेदि कोतीए देवीए दोबइए देवीए य सद्धि अतेउरपरियालसद्धिं सपरिवुडे सीहामणवरगए यावि विहरइ) દરરોજ વનફરતી ઉધાર કાલેગ ભેગવવા લાગ્યા. એક દિવસની વાત
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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