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मातामंकणार मन पुरत । ततः पलु रासुदेवममुखा प्रत्येक २ गायत् माधारयन् गमनायहरितनापुर नगर गातु मला इत्यर्थः।
ततः खल स पारनामको राजा पीटुम्पियपुग्णान् शब्दयति, भन्दयित्वा एवमवादी-गाउत खलु य हे देवानुपियाः ! हस्तिनापुरे पश्चानां पाण्डवानां पञ्च 'पासायाडिसए ' मासादारतंसान पारयत । कि भूतानिन्याह-' अग्भुग्गयमूसिय' अभ्युद्गतोच्छूितान-अत्युच्चानित्यर्थः । वर्णक -प्रयमाध्ययनोक्तअणुगिण्माणा अकालपरिरीण समोसरह ) हजारों राजाओं से अपने दोनों हाथों की अजलि फरके और उसे शिर पर रयकर के पड़ी नम्रता के साथ नमस्कोर करके इस प्रकार कहा हे देवानुप्रियो ! रस्तिनापुर नगर में पाच पाडवों और द्रौपदी देवी का कल्याणकारी उत्सव होगा इसलिये हे देवानुप्रियों। आप सय मेरे ऊपर अनुग्रह करके शीघ्र से शीघ्र पधारें । (तण्ण वासुदेपामोसा पत्तेय • जाव पारेत्थ गम णाए) इम के याद वे वासुदेव प्रमुख प्रत्येक जन वहाँ हास्तिना पुर जाने के लिये प्रस्थित हो गये। (तपण से पडराया कोडुम्बियपुरिस सद्दावेइ • एव वयासी-गच्छह णतुम्भे देवाणुप्पिया हथिणाउरे पचण्ह पडवाण पच पासायडिसए कारेह, अभुग्गयमुसिय वण्णओ जावपडि रूवे) इतने में पाइराजा ने कौटुम्पिकपुरुपों को बुलाया ओर घुलाकर उनसे ऐसा कहा-हे देवानुप्रियो! तुम लोग हस्तिना पुर जाओ वहा जाकर पाचों पाडवों के लिये पांच श्रेष्ट प्रासाद बनवाओ। ये प्रासाद
હજારે રાજાઓને પિતાના બને હાથની અજલિ બનાવીને અને તેને મસ્તકે મૂકીને ખૂબ જ નમ્રપણે નમસ્કાર કર્યો અને આ પ્રમાણે વિનતી કરી કે હે દેવાનુપ્રિયે ! હસ્તિનાપુર નગરમા પા પાડ તેમજ દ્રૌપદી દેવીના કલ્યાણકારી ઉત્સવ થશે એથી હે દેવાનપ્રિયે ! તમે સૌ મારા ઉપર કૃપ ४श सत्परे त्या पधारे। (तएण वासुदेवपामोक्सो पत्तेय २ जाव पहारत्य गमणाए ) त्या२५छी ते वासुदेव प्रभुम ४२४ रात त्याथी स्तिनापुर था ઉપડી ગયા
तएण से पडुराया कोड वियपुरिस सदावेइ २ एव वयासी-गच्छह ण तुम्भे देवाणुप्पिया हस्थिणाउरे पचण्ड पडवाण पच पासायव डिसए कार, अन्भुग्गयमुसिय वण्णओ जाव पडिरूवे)
તે વખતે પાડુ રાજાએ કૌટુંબિક પુરૂને લાવ્યા અને બેલાને તેઓને કહ્યું કે હે દેવાનુપ્રિયે ! તમે હસ્તિનાપુર જાઓ * * જઈને