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नगरधर्मामृतणी टो० ० १६ द्रौपदीचरितनिरूपणम्
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भाविनी सिद्धिर्येपा, ते भवसिद्विकास्तेषा मध्ये नरपुण्डरीकाणी येष्टास्ते तथा तेपा, तथा ' चिलगाणं ' तेजसा देदीप्यमानाना ' चिल्लग ' इति देशी शब्दः । तथा - ' पलनीरियरूप जोयणगुणलावन्नकित्तिया ' बलवीर्यरूपयौवनगुगलानण्य कीर्तिकाल - कायिक, वीर्यम् - उत्साहः, रूप-सौन्दर्य, यौन तारुण्य, गुणान् - ओदार्यगाम्भीर्यादीन् लागण्य-योजनायोजन्य कान्तिविशेष, कीर्तयति या सा तथा, साक्रीडिका नानी कीर्तन करोति स्मेत्यर्थ | अन पूर्वोक्तमपि विशेपण किंचिद् विशेषोधनार्थ पुनः कथितम् ।
ततस्तदनन्तर पुनः सा क्रीडनधानी ' उग्गसेणमाईण जायताण' उग्रसेना दीना यादवाना बलवीर्यादि कीर्तन करोति कृपा भणति च=सा यात्री द्रौपदी गुणलावण्ण कित्तियाकित्तणं करेड) सबसे पहिले उस कोडन धात्री ने वृष्णिवश के पुगव समुद्रविजय आदिश दशारों के कि जो त्रैलोक्य में भी विशिष्ट बलशाली माने जाते थे, लाग्यो शत्रुओ के मान को मर्दन करने वाले थे, भवसिद्धिक पुरुषों में जो श्रेष्ठ कमल के जैसे माने गये हैं, और जो अपने स्वाभाविक तेज से सदा दमकते रहते थे वल का, वीर्य का, रूप का, यौवन का, गुणो का, लावण्य का, कीर्तिका होने के कारण कीर्तन-वर्णन किया । शारीरिक शक्तिका नाम वल, उत्साह का नाम वीर्य, सौन्दर्य का नाम रूप तारुण्य का नाम यौवन है । औदार्य गाभीर्य आदि गुण है । यौवन वय से जय जो कांति शरीर में आती है वह लावण्य है ( तओ पुणो उग्गसेणमाईण जायवाण भगइ य सोह्रगख्वक लिए वरेरि घर पुरिसगधवीण जो हु ते रोड थिय दडओ, तण सा दोवई रायवरकन्नगा वह रायवरसहस्साण मज्न जोन्वणगुणलारकित्तिया कित्तण करेइ )
તે ગ્રીન પાત્રીએ સૌ પહેલા વૃષ્ણુિ વામા પુવ (શ્રેષ્ઠ) સમુદ્ર વિજય વગેરે દશ દશાાઁનુ-કે જેઓ ત્રણે લેકામા પણુ વિશિષ્ઠ શક્તિયાળી ગણાતા હતા, લાખા શત્રુઓના માનનુ મન કરનારા હતા, ભત્રસિદ્ઘિક પુરૂષામા જેઓ કમળની જેમ શ્રેષ્ઠ ગણાતા હતા અને જેએ પેાતાના સ્વાભાવિક તેજથી हमेशा अज्ञशता रहेता हता, जग, वीर्य, ३५, योवन, गुझेो, सावएय, डीर्ति વગેરેથી સપન્ન હતા—વર્ણન કયુ ગારીરિક શક્તિનુ નામ ખળ, ઉત્સાહનુ નામ વી, સૌન્દર્યંનુ નામ રૂપ અને તારૂણ્યનુ નામ યૌવન છે ઔદાર્ય, ગાલીય ગુણ્ણા છે સુવાવસ્થામા જે શીર કાતિવાળુ થાય છે તેને લાવણ્ય કહેવામા આવે છે
(तओ पुणो उग्गसेण माईण जायना भणइ य सोहगाव कलिए नरेहि पुरिसी ते होइ हिययदइओ तएण तं दोवई रायवर कन्नगा