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________________ मानाधर्मकया समणमाहण जाव वणीमगाणं देयमाणी य दवावमाणी य विहराहि।तएण सा पोट्टिला तेतलिपुत्तेणं एवं वुत्तासमाणा हट्ठतुट्ठा तेयलिपुत्तस्त एयमंट पडिमुणित्ता, फ्ल्लाकल्लि महाणससि विपूल असण जाव दवावेमाणी विहरड ।।सू०६॥ टीका-'तएण' इत्यादि । ततः बल म पोटिला भयदा कदाविद केनापि कारणेन तेतलिपुत्रस्य अनिश, अकान्ता, अमिया, अमनोज्ञा, अमनोऽमा जाता चाप्यऽभवत् । नेच्छिन्ति च तेतलिपुनः पोहिलाया नाम गोतमपि 'सवण याए ' श्रवणतायै श्रूयतेऽनेनेति श्रवणं कर्म, तस्य कर्म असणवा तस्य, अषण विषयोकर्तुम् इत्यर्थ किं पुन तस्या ' दरिसग या दर्शन पा तया महपरिमोग वा, वान्छेत् , अपितु न । तत खलु तस्याः पोहिलाया अन्यदा कदाचित पुन्यरत्तावर तण्ण सा पोटिला इत्यादि । टीकार्थ-(तएण) इसके बाद (सा पोहिला) वह प्रधानकी स्त्री पोहिला (अन्नया कयाइ) किसी समय-कोई निमित्त को लेकर-किसी भी कारण से-(तेतलिपुत्तस्स अणिट्ठा जाया यावि होत्था) तेतलिपुत्र के लिये अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अमनोज एव अमनोम बन गई । (णे च्छह तेतलिपुत्ते पोटिलाए नाम गोत्तमवि सवणयाए किं पुणदरिसण वा परिभोग वा) इस प्रकार वह तेतलिपुत्र उस पोहिला के नाम गोत्र तक को भी सुननो पसद नहीं करता तो फिर उसके देग्वने और परि• भोग पास जाने की तो बात ही क्या है। (तएण तीसे पोहिलाए अम तएण सा पोट्टिला इत्यादि ॥ हाथ-(तएण) त्या२ पछी (सा पाहिला) ते समात्यनी पत्नी पाहिली (अ नया कयाइ) मते गमेत पारणे (तेतलिपुत्तस्स अणिट्ठा ५ जाया यावि होत्था) तेतलि पुत्रने माटे मनिष्ट, मन्त, मप्रिय आमना सन અમનેમ થઈ પડી (णेच्छ तेतलिपुत्ते पोट्टिलाए नाम गोत्तमवि सवणयाए कि पुगदरिसण वा परिभोग वा ) એથી તેતલિપુત્ર અમાત્યને તેનું નામ ગેન સુદ્ધા સાભળવુ પણ પસંદ પતું ન હતું ત્યારે તેને જોવાની અને તેની પાસે જવાની તે વાત જ શી ? (तएण तीसे पोहिलाए अन्नया कयाड पुधावरतकालममयसि इमेयारूचे fy
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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