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अनगारधर्मामृतवर्षिणी टी० अ० १६ द्रौपदीचर्चा
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चत्राणि परिधाय ' जिणपरिमाण अक्षणं करेड ' जिनप्रतिमाना, कामदेव प्रतिमानामर्चन करोत विवाहविधि निर्चिन सपन्नार्थ मिति भाग: ' करिता ' कृत्वा ' जेणेव अतेरे तेणेव उवाग छह ' यत्रैवान्तःपुर तत्रैवो- पागच्छति ॥ ०२१ ॥ द्रौपदीचर्चा
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यत्तु - " णिपरिमाण ऊच्चण करेइ " इति पाठ समाश्रित्य भगवतोऽर्हतः पूजन जैनधर्मानुयायिभि वर्तन्यमित्याहुस्तन्मिथ्यात्वविलस्तिम् अस्य पाठस्य चरितानुवादरूपत्वेन विधायकत्वासम्भवात् । विधिवाक्य हि विनाज्ञाया बोधक त्वेन विधायक भवति, यथा- भगवता विधेयतयोपदिष्ट पइविधावश्यक चतुर्विधजिन प्रतिमा का कामदेव की प्रतिमा का निर्विघ्न विधारकार्य के लिये अर्चन करती है अर्चन कर के फिर वह ( जेणेव अते उरे तेणेव उवागच्छइ ) जहाँ अत पुर था वहां चली गई ॥ सृ० २१ ॥ द्रौपदी चर्चा
जो "जिणपडिमा अञ्चणं करेइ" इस पाठका आश्रय लेकर प्रतिमापूजन की उपयोगिता कहते हुए यह कहते हैं, कि " अर्हत भगवान की प्रतिमा की पूजा जैनधर्म के पालको को करना चाहिये" यह उनका कथन मिथ्यात्व का विलास ही है। क्यो कि यह " जिन डिमाण "" इत्यादि वाक्य चरित का ही अनुवादक है अतः ऐसे वाक्य किसी मुरय अर्थ के विधायक नहीं हुआ करते हैं । चारितानुवाद से तो मिर्फ जिस व्यक्ति ने जो २ आचरण किया है उसका ही बोध होता है। शास्त्र विहित मार्गके निर्देशक विधिवाक्य हुआ करते हैं-क्यों कि कि ऐसे वाक्य जिन भगवान की आज्ञाके विधायक होते हैं। जिस प्रकार पट् પ્રતિમાનુ નામદેવની પ્રતિમાનું નિવિઘ્ન વિવાહકા સ પન્ન યવાના હેતુયી शमर्थन उरे छे, अर्थन जरीने ( जेणेव अतेउरे तेणेव उवागच्छइ ) જ્યા રણવાસ છે તે તરફ જતી રહી ! સૂત્ર ૨૧ !!
દ્રૌપદી ચર્ચો
डेंटला "जिण डिमाण अचण करेइ” भ
પાઠના આધારે પ્રતિમા પૂજ નની ઉપચાગિતા સિદ્ધ કરતા આ પ્રમાણે કહે છે કે “ અર્હત ભગવાનની પ્રતિમાનુ પૂજન જૈનધમ પાલન કરનારાઓએ કરવું જોઇએ ’” તેમનુ આ થન સત્યથી મહુ દૂર છે એટલે કે આ વાત સાવ અસત્યથી પૂર્ણ છે કેમકે जिन डिमाण " वगेरे वाड्य शक्तिना ४ अनुवाद छे भेटला भाटे એવા વચના કાઈ વિશેષ અને સ્પષ્ટ કરનારા હાતા નથી ચિરતાનુવાદથી તે ફક્ત જે માશુસે જે તે આયરણ કર્યું છે, ફક્ત તેનુ જ જ્ઞાન થાય તેમ છે શાસ્ત્રવિહિત માર્ગને બતાવનારા તે વિધિ વાચે જ થાય છે જેવી રીતે
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