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गोमतपिणी टो० अ० १६ द्रौपदीचरितवर्णनम् काई आसणाई अत्थुयपच्चत्थुयाइ रएहर एयमाणत्तिय पच्चपिणह, ते वि जाव पच्चप्पिणति, तएणं ते वासुदेवपामुक्खा वहवे रायसहस्सा कल्ल पाउ० पहाया जाव विभूलिया हत्थिसंधवरगया सकोरट० सेयवरचामराहि हयगय जाव परिवुडा सव्विड्डीए जाव रवेणं जेणेव संयंवरे तेणेव उवागच्छद उवाग. छित्ता जणुपविसति अणुपविसित्ता पत्तेय२ नामकिएसु आस
सु निनीयति दोवड रायवरकण्ण पडिवालेमाणा चिट्टति, नएण से पडुए राया कल्ल हाए जाब विभूलिए हथिखधवरगए सकोस्ट० हयगय कपिलपुरे मज्झमझेण निग्गच्छंति जेणेव सयवरमडवे जेणेन वासुदेवपामुक्खा बहवे रायसहस्सा तेणेव उबागच्छद उवागच्छित्ता तेसि वासुदेवपामुक्खाण करयला वहावेत्ता कण्हस्त वासुदेवस्ल सेयवरचामर गहाय उवधीयमाणे चिट्ठति ॥ सू० २०॥
टीमा-तएग से ' इत्यादि । ततः खलु स द्रुपदो राजा कौटुम्बिकपुरु पान् शयति, शहायला एवमयादीत-गच्छन खलु यूय ह देवानुपिया. ! काम्पिल्यपुरस्य नगरस्य यहि प्रदेशे गङ्गाया महानया अदसामन्ते-नाविदर नातिमनापे एक महान्त स्वयम्बरमण्डा कुरुत कोशनित्याह--' अणेग' इत्यादि।
'तरण से वए राया कोडुपिय पुरि से ' इत्यादि ।
टीकार्थ(तएग) इसके बाद (द्वए राया) द्रुपद राजा ने (कोडग्रिय पुरिसे सदावे) कौटुम्बिापुरुषो को बुलारा (सदाविता एव वयाली) बुलाकर उनसे इस प्रकार कहा-(गच्छह ण तुम देवाणुप्पिया कपिछारे नयरे धहियागगाए महानईए अदूरसामते एग मह सयवरमडव करेह,
'तएण से दूपए राया कोडु विय पुरिसे' इत्यादि
Aslथ-(तपण ) त्या२५जी (दूरए राया) ६५.२ नये (कोडु वियपुरिसे सहावे) पि ५३वाने मावा. ( सदारिता र क्यासो) मानावाने तमन मा प्रभार (गन्छह ण तुम देवाणुपिया। कगिल्लारे नयरे महिया गगाए महानईए अदूरसामवे एग मद पवरमस करेह, अणेगनमस