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सनगारधर्मामृतवर्षिणी शेषा म० १६ द्रौपदीचरितवर्णनम
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सरति, निर्गत्य यत्रैव ग्रामाकरनगरेषु अनेकानि राजसहस्राणि तत्रैवोपागच्छति उपागत्य यावत्-समत्रसरत, समवसरत ' इति पर्यन्त दूतवाक्य पूर्ववद् बोध्यम् । ततः खलु तानि अनेकानि राजसहस्राणि तस्य दतम्यांन्तिके पतमर्थ वा निशम्य हृष्टतुष्टाः सन्तः दूत सत्कारयन्ति = सत्कृत्त कुर्वन्ति समानयन्ति, सत्कार्य, समान्य प्रतिविसर्जयन्ति ।
ततः खलु ते वासुदेवप्रमुखा वहुसहस्रसरयका राजानः, = प्रत्येक २ स्नाताः जेणेव गामागर जाव समोसरह ) वह दशवा दूत उसी तरह से - पहिले के दूतों के समान कापिल्य नगर से निकला और निकल कर जहां ग्राम आकर और नगर थे वहा पर अनेक राजसहस्त्रों के पास गया वहा जाकर शिष्टाचार पूर्वक उसने सब से इस प्रकार कहा कि काम्पिल्यपुर नगर में हुपद राजा की पुत्री द्रौपदी का स्वयवर होने वाला है- सो आपमन लोग डुपद राजा के ऊपर कृपा करके जल्दी कांपिल्य पुर नगर पधारे (तएण ताइ अणेगाइ रायसहस्सा तस्स दृयस्स अतिए एयम सोच्चा निसम्म हट्ठ० त दूय सत्कारेति, सक्कारिता सम्माणेति, सम्मानित्ता पडिविसज्जे ति ) इस प्रकार वे अनेक सहस्र राजा उस दूत के मुग्व से इस समाचार को सुन कर और उसे अपने अपने २ हृदयों में अवधारित कर बहुत ही अधिक आनन्द से प्रमुदित बनकर परम संतोष को प्राप्त हुए। उन्होने उस दून का सत्कार किया सत्कार कर के सम्मान किया और सन्मान करके फिर उसे पीछे विसर्जित कर दिया - भेज दिया । (तएण ते वासुदेव पामुक्खा बहवे रायसहस्सा पत्तेय
समोसरह) ते दृशभो इत मधानी प्रेम अभीक्ष्य नगरथी नीउज्याने નીકળીને જ્યા ગ્રામ આકર અને નગર હતા ત્યા અનેક સહસો રાજાની પાસે ગયા ત્યા જઈને નમ્રપણે તેણે સહુને આ પ્રમાણે કહ્યુ કે પિલ્ય નગરમાં દ્રુપદ રાજાની પુત્રી દ્રૌપદીના સ્વયંવર થવાના છે તે આપ સૌ દ્રુપદ राम पर या उरीने अक्सिम जपिस्य नगरमा पधारो ( तरण ताइ अगणाइ रायमहस्साइ तस्स दूयस्स अतिए एयमट्ट सोचा निसम्म हट्ट० त दूर सकारे ति मकारिता, सम्माणे ति, सम्माणित्ता, पडिनिस जे ति ) मा राते સહસ્રો રાત તે તના મુખથી આ સમાચાર સાભળીને અને તેને પેાતાના હૃદયમાં ધારણ કરીને ખૂમજ પ્રસન્ન તેમજ પરમ સતુષ્ટ થયા તેઓએ તને સત્કાર કર્યો અને સન્માન કર્યું ત્યાપછી તને તેઓએ વિદાય (तरण वे वासुदेवमुक्या बहवे रायसहरसा पत्य २ दाया
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