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________________ मनगारधर्मामृतपिणी टीका अ० १६ द्रौपदीचरितवर्णनम् २६३ नातः यावत्-सर्वालङ्कारविभूपितशरीरश्चतुर्घण्टमश्वरय · दुरुहइ' दोहति-आरोइति । दुरुह्य बहुभिः पुरुपैः कीदृशैः पुस्पैरित्याह-' सन्नद्ध जाच गहिया' इति अत्र यानन्दे नैव चोध्यम्-सन्नद्धबद्धवम्मियकाएहि, उप्पीलियसरासनपट्टगेहि, पणद्धगेविज्जगवद्धाविद्धविमलवरचिन्धपहिं, गहियाऽऽउहपरणेहि इति । सन्नद्धचद्धवर्मितकवचैः उत्पीड़ितशरासनपट्टकै , पिनौवेयकवद्धविद्धविमलपरचिह्न पट्टः गृहीतायुधपहरणैः, सन्नद्धा. सज्जीकृता, बद्धा कशाबन्धनेन सरद्धा, वमिताभड़े परिहिताः कवचा यै स्ते सनद्धवद्धचर्मितकवचास्तै , तथा-उत्पीडितशरासनपट्टकै, उत्पीडितानि-गुणारोपणेन वक्रीकृतानि शरासनपट्टानि धनुः प्रकाण्डानि यैस्ते उत्पीडितशरासनपट्टका रज्ज्वारोपणनक्रीकृतधनुर्वारिणस्तैः, वह जहा अपना घर था वहाँ आया। वहां आकर उसने कौडम्बिक पुरुषो को बुलाया बुलाकर उनसे ऐसा कहा हे देवानुप्रियों! तुम लोग शीघ्र ही चार घटों से युक्त अश्वरथ को घोडे जोतकर यहा ले आओ। उन्होंने आज्ञानुसार ऐसा ही किया। वे चार घटा वाले उस रथ में घोडे जोतकर उसे वहा ले आये (तएण से दृए हाए जाव अलकार सरीरे चाउग्घट आसरह दुरुड, दुरुहित्ता यहिं पुरिसेहिं सन्नद्ध जाव गहियाऽऽउहपहरणेहिं मद्धिं सपरिबुडे कपिल्लपुरनयर माझ मज्जे ण निग्गइ ) इस के बाद इतने स्नान किया, यावत् अपने शरीर को समस्त अलकारों से विभूपित किया। बाद में वह उम चतुर्घट वाले अवरथ पर सवार हो गया। उस के साथ सजाकर अपने शरीर पर कवच पहिर रग्वा है ऐसा अनेक पुरुष थे ज्यापर योण को आरोपित करने से वक्री भूत हुआ धनुष जिनके हाथो में हैं ऐसे अनेक धनुर्धारी પિતાનું ઘર હતુ ત્યા આવ્યું ત્યાં આવીને તેણે કૌટુંબિક પુરૂને બોલાવ્યા અને બોલાવીને તેમને કહ્યું કે હે દેવાનુપ્રિય! તમે સત્વરે ચાર ઘટડીઓવાળો અધરથ જેતરીને અહીં આવે કૌટુબિક પુરૂએ તેમજ કર્યું ચાર ઘટડી सापाणी मश्वरथ तरी त्या माव्या (तएण से दूर पहाए जाव अलकार० सरीरे चाउग्घट आसरह दुरुहाइ दुरुहित्ता यहूहिं पुरिसेहि सनद्ध जाय गहियाऽऽउहपहरणे हिं सिद्धिं सपरिवुडे कपिल्लपुरनयर मज्झ मज्झेण निग्गच्छइ ) त्या२ माइते नान यु यापत् पाताना शीरने या ततना અલકારેથી શણગાર્યું ત્યારપછી તે દૂત ચતુર્ઘટવાળા અશ્વરથ ઉપર સવાર થઈ ગયો તે દૂતની નાચે બખતરથી સુસજજ થયેલા ઘણા પુરૂ હતા પ્રત્યચા ઉપર બાણ ચઢાવવાથી વક્ર થઈ ગયેલા ધનુષ જેમના હાથમાં છે
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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