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________________ arrant टीकाम० १६ सुकुमारिकानिरूपणम् २४५ माणीए इमेयारुवे अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था, जयाणं अह अगारवा समझे वसामि तया णं अह अप्पवसा, जया णं अह मुंडे भविता पव्वइया तथा णं अहं परवसा, पुत्रि च णं ममं समाणीओ आढायतिर इयाणि नो आढतिर त सेयं खलु मम कल पाउ० गोवालियाण अतियाओ पडिनिक्खमित्ता पाडिएक उवस्तय उत्रसंपज्जित्ताण विहरित्तए तिकट्टु एव संपेइ संपेहित्ता कह पा० गोवालियाणं अज्जाणं अंतियाओ पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ता पडिएक्कं उवस्सय उवसपज्जि - नाणं विहरइ, तणं सा सूमालिया अज्जा अणोहट्टिया अनिवारिया सच्छदमई अभिक्खण अभिक्खणं हत्थे धोवेइ जाव एइ तत्थ वि य णं पासत्था पासत्यविहारी ओसण्णा ओसण्णविहारी कुसीलार संसत्तार बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणइ अद्धमासियाए सलेहणाए तस्स ठाणस्स अणालोइयअपडिक्कंता कालमासे काल किच्चा ईसाणे कप्पे अण्णयरसि विमाणसि देवगणियत्ताए उबवण्णा, तत्थेगइयाण देवीणं नव पलिओ माई ठिई पण्णत्ता, तत्थ णं सूमालियाए देवीए नव पलिओ माईं ठिई पन्नता ॥ सू० १५ ॥ टीका -- 'तएण सा' इत्यादि । ततः खलु सा सुकुमारिका आर्या 'सरीर ' तएण सासूमालिया अजा ' इत्यादि ॥ टीकार्थ - (तएण ) इस के बाद (सा मूमालियाए अज्जा सरीर घरसा “ तएण सासूमालिया अज्जा' इत्यादि - (तरण) त्यारपट्टी ( सा सूमालिया अज्जा सरीरधउता जाया यावि
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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