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उजाणस्स उजाणसिरिं पचणभषमाणा विहरति, तरथ णे एगे गोहिलगपुरिस देवदत्तं गणियं उन्चंग धरइ एगे पिट्ठओ आयात्त धइ एगे पुप्फपुरयं नगर एगे पाप पर पगे चामरुस्से करेइ तपण मा समालिया अजा देवदत्तं गणिय तेहिं पंचहि गोहिष्टपुरिसहि सम उसलाई माणुस्सगाई भोगभोगाइ भुंजमाणी पासइ तपण तीसे इमेयास्पेसंकप्पे समुप्पज्जित्था-अहोणंइमाइस्थिया पुरापोराणार्ण कम्माणं जाव विहग्इ, तं जइ णे इमस्स सुचरियरस तव. नियमभचेतासरूम मल्लाणे फलवित्तिविममे अस्थि तो णं अहमति आगमिस्मेणं भागहणेनं इमेयारूपाइ उरा. लाइ जाव विहरिज्जामि त्तिह नियाणं करेइ करिता आयावणभूमिओ पचोरुहइ ।।सू० १४॥
टीका-' तत्थ ण चपाए' सादि । तन खलु चम्पाया नगयां ललिता नाम्नी ' गोट्ठी' गोष्टी मण्डली परिवसति किं भूतो सा गोष्ठीत्याइ-'नरवइदिग्ग नियारा' नरपतिदत्तविचारा नरपतिना दत्तो विचार. समतिर्यस्यै सा तथा-सेवा दिना सन्तुष्टानरपतेर्लब्धस्मतन्त्रता, तथा - ' अम्मापिइनिययनिप्पिवासा' अम्बापितृनिकनि पिपासा-मातापिनादि निरपेक्षा, 'वेसविहारकय निकेया'
'तत्य ण चपाए ललिया नाम ' इत्यादि ।
टीकार्य-(तत्य ण चपाए ललिया नाम गोही परिवसइ) उस चपानगरीमें 'ललिता' इस नामकी गोष्ठी-मडली रहती थी । ( नरव दिण्णवियारा, अम्मापिद नियय निप्पिवासा वेसविहोरकयनिकेया,
' तयण चपाए ललिया नाम' इत्यादि
साथ-(तत्यण चपाए ललिया नोम गोदी परिवसइ) ते या नगदीमा 'लिता' नामे ही भजी ती ती (नरवइ, दिण्णवियारा अम्मापिद निययनिस्पिवासा, वेसविहारकयनिकेया, नाणाविहअविणयप्पहाणा, अड्डा