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________________ दक्षिण भारत में जैन समाज के प्रखर नेता दानवीरशेठ स्व० श्रीमान ताराचंदजी साहेब गेलडाकी जीवनझलक दक्षिण भारत के प्रवास पर आये हुए किसी भी व्यक्ति के दिलमे, मद्रास जैसे शहर के जैन समाज की शिक्षण और-वैद्यकीय सस्थाओं का सुव्यवस्थित क्रम और भय देखकर आनद हुए विना नहीं रह सकता । और स्वतः ही जैन समाज की दान-दिशा को इस ओर ले जाने वाले व्यक्तिके रूपमे दानवीर शेठ स्व० श्रीमान् ताराचदजी साहेब गेलड़ाका नाम व व्यक्तित्व नजरमे आये विना नहीं रहता।। मध्यम कदका इकहटा वदन, खादीकी धोती, खादीका कुरता और खादी की टोपी, पैरमे केन्वास के पादत्राण हाथमे छोटीसी लकडी-चमकती तेज आखे और ७० वर्ष की अवस्थामे भी जवानों की तेजी-ये आप के अभिन्न गुणों के सूचक थे। उनके यह सादगी अत समय तक भी कायम रही थी। सन १९३७ मे आप राजकोट पधारे थे वहा अनेक शिक्षण संस्थाओंको देखकर आपने अपने मनमे तय किया कि मैं मद्रास जाकर शिक्षाकी ऐसीही सस्थाएँ वनाउगा । उनके विचारों की पुष्टि के रूपमे श्रीमान् विरदीचदजी सा मलेचाने ५०००० रूपया दान दिया और यहाकी श्री एस एस.जैन एज्युकेशन सोसायटी की स्थापना हुई । इस सोसायटी के विकास के लिये आपने अपने व्यापार से भी-निवृत्ति ले ली और-क्रमशः इसका विकास करते रहे । इस सोसायटी के तत्वावधानमे क्रमशः प्रायमरी स्कूल, गोडिंग होम, हाईस्कूल एव कॉलेज भी स्थापित हुए और आज भी सुचारु रूपसे चल रहे है । जब तक ये सस्थाएँ पूर्णरूपसे आत्म-निर्भर नही हुई तबतक आप सोसायटी के प्रारभ कालसे मत्री बने रहे । इतनाही नही प्रत्येक सस्था के लिये आपने दान दिया था ही-किन्तु वाराचद गेलडा जैन विद्यालयके लिये ३१००० रु का भव्य दान दिया। इसके उपरात भी २२००० रू. का और दान आपका होनेसे आप
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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