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अनगारधर्मामृतवपिणी टीका अ० १६ सुकुमारिकाचरितवर्णनम्
२०९ शयनीयात् शय्यात उत्तिष्ठति, उत्थान सागरस्स दारकस्य सर्वतः समन्ताद् मार्ग णगवेपण कुर्वती२ वासगृहस्य-शयस्य द्वार विवाटितम् उद्घाटित पश्यति, दृष्ट्वा एवमयादीत्-गतः स सागरताः , इति कृपा 'ओहयमणस कप्पा' अपह तमनः सकल्पा-नष्टमोरपा, यावर ध्यायति आर्तभ्यान करोतिस्म । त्तस्तदन न्तर भद्रा सार्थवाही 'रल 'कल्ये द्वितीय दिवसे प्रादुः प्रभातायां रजन्या यावत् तेजसा ज्वलति-दीप्यमाने सूर्य उदिते दामचेटी-दामपुरी शब्दयति, शवयित्वा
तएण समालिआ दारिया' इत्यादी । टीकार्थ-(तराण) उसके बाद नमालिश दारिवा) सुकुमारिका दारिका (तओ मुहत्ततरस्स पडिबुट्टा पडक्या जाव अपासमाणा) एक मुहूर्त के याद जग पडी-सो उन्म पतिव्रता ने कहा अपने परिको जप नहीं देखा तप (सयणिज्जाओ उठेइ, सागरस्स दारगस्ल मव्याओ समता मग्गण गवेसण करेमाणी २ वास परम्स दार विहोडिय पामड, पामित्ता एव क्यासी) पलग से उठी उठकर उसने सागर दारक की वहीं पर सय और घार २ मार्गण गवेषणा की- । जब उसने शयन गृह के दरवाजे को उबड़ा हुआ देर ।-तय उसे विचार आया कि ( गये से सागरे त्ति कटु ओत्यमणसकपा जाव नियायइ, तराण सा महासत्यवाही कल्ल पाउ० दासचेडिय समावेह ) कि सागर चले गये है । इस प्रकार अपहतमनःसकल्प होकर वह विचार में पड गई, इतने मे भद्रा सार्थवा
( तएण सूमालिया दारिया इत्यादि
टी14-( तएण ) त्या२मा (सूमालिया दारिया ) सुपर हारि (तओ मुहु तत्तरस्स पडिसुद्धा पइचया जाव अपासमाणी ) से मुड़त छ। જાગી ગઈ તે પતિવ્રતાએ ત્યાં પોતાના પતિને જ્યારે જોયા નહિ ત્યારે
(सयणिज्जाभी उटेड, सागरस्स दारगस्स सपओ समता मग्गणगवेसण करेमाणी २ वासघरस्म दार विहाडिय पासइ, पासित्ता एव वयासी)
રચ્યા ઉપરથી ઊભી થઈ અને ત્યારપછી તેણે ત્યાજ આસપાસ મેર સાગર દારકની માર્ગણ-ગવેષણ કરી જ્યારે તેણે શયનગૃહના બારણાને ઉઘાડેલું જોયું ત્યારે તેને વિચાર આવ્યું કે
( गए से सागरे तिकटूटु ओहयमणमाप्पा जाब झियापड, तण्णं मा __ भदा सत्यवाही कल पाउ दामचेडिय सद्दावे)
સાગર જતા રહ્યા છે. આ રીતે અપહત મન સકત્પવાળી થઈને તે