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________________ ૭.ર wterw.dward नमरिया एवमनादीन् श्रपाम भन्न भ्यननं यावत् तद् तथैतद् युग धन=शेयम्-यत्-भाम् अम्वापितरौ आजामि, त मातापितरौ पष्ट्वा स भ देनानुमियाणामन्तिके यावत् प्रयजामि | भगवानाह - यथाख हे देशमिये | | ततः सद्मा काली दारि पार्श्वेन अता पुरुषा and th हुई। उसने उन पुम्पादानीय पार्श्वनाथ भत प्रभु को तीन वार चना नमन्कार किया । याद में (चदित्ता नमसित्ता एव बयासी सद शमिण भते । णिग्गय पात्रगण जाव से जहे तुम्मे वग्रह, ज णवर देवापिया ! अम्म्मापि पुच्छामि, अर देवाणुपियाण अतिए जान फराम, अहासुर देवापि तसा काली दारिया पासेण अरमा पुरिसादाणोपणं एव वृत्ता समाणी हट जाव हियया पास अरट चदह, नमसह, चरिता नमसिता तमेव धम्मिय जाणपवर दुरु हड, दूरहित्ता पासस्स अरहओ पुरिसादाणीयास अतियाओ अबसा लवणाओ चेहयाओ पविनियम पटिनिमित्ता जेणेत्र आमलकपा नयरी, तेणेच उचागच्छ ) वंदना नमस्कार करके उसने उन प्रभु से ऐसा कहा - हे मदन ! मैं आपके द्वारा प्रतिपादित निर्ग्रन्थ प्रवचन को विशेष श्रद्धा की दृष्टि से देवनी हूँ आपने जैसा यह प्रतिपादित किया है वह वस्तुतः वैसा ही है। यह मुझे बहुत रुचा है। अत' मैं माता पिता से पृछती हैं। उनसे पूछकर फिर आप देवानुप्रिय के पास आकर હૃદય થઇ તેણે તે પુરુકાદાનીય પાર્શ્વનાધુ અહત પ્રભુને ત્રણ વાર વદતા અને નમસ્કાર કર્યા ત્યારકાદ (वदित्ता नमसित्ता एव वयासी सद्दद्दामिण भते । णिग्गथ पात्रयण जाव से जहेय तुम्भे वयह, ज णवर देवाणुपिया ! अम्मापियरो आपुच्छामि, तरण अह पियाण अतिए जाव पन्नयामि, अहा सुह देवापिए ! तएण सा काली दारिया पासे ण अरहया पुरिसादाणीएण एव बुत्ता समाणी हट्ट जाव हियया पास अरह वदः, नमस, वदिता नममित्ता तमेन वम्मिय जाणपत्रर दुरुहई दुरूहित्ता पासस्स अरहओ पुरिसादाणीयम्स अतियाओ नावणाओ वेइयाओ पडिनिस्खमई, पडिनिक्खमित्ता जेणेव आमलकप्पा नयरी तेणेन उवागच्छर ) વદના નમકા કરીને તેણે તે પ્રભુને આ પ્રમાણે કહ્યુ કે હે ભદન્ત 1 તમારા વડે પ્રતિપાદિત નિથ પ્રવચનને હુ વિશેષ શ્રદ્ધાની દૃષ્ટિએ જે છુ તમૈ જેવુ આ પ્રતિપાન્તિ કર્યુ કે ખરેખર તે તેવુ જ છે મને આ ખૂબ જ ગમી ગડુ છે એથી હુ માતાપિતાને પૂછી લઉ છુ તેમને પૂછીને
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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