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वाताधर्मकथा
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नमस्थित्वा प्रतिनित्तः । ततः खलु ारी' 'उद्यान' उत्पपा= उत्थानशक्त्या उत्तिष्ठति, उत्थया उत्थाय 'जान' यावत् स्थरिन पनिमा ए मवदत् - ' से जय तु वेद हे देवानुमिनाः । यूव यथा यद् वद, तत्तथैन, 'जणार 'नरो विशेष सचैत्रम् - यह पूर्व पुण्ड रीक राजानम् आपृच्छामि । उत सलु 'जार पत्रयामि' पावन् पव्रजामि | form ) इसके बाद करी युवराज स्वरों को बढना करने के लिये जानेवाले अनेक मनुष्य का कोलाहल सुनकर मावल राजा की तरह स्थविरो के पास गया वहा जाकर उसने उनकी वदना की - नमस्कार किया । वदना नमस्कार कर फिर उसने उनकी पर्युपासना की । स्थविरों ने धर्म का उपदेश दिया। उस उपदेश को सुनकर पुडरीक श्रमणोपा सक बन गया। बाद में वह स्थविरों को बढ़ना और नमस्कार कर अपने स्थान पर वापिस वहा से लौट आया । (तरण से कडरी उडाए उट्ठेह, उठाए उट्ठत्ता जाव से जहेय तुम्मे चदह, ज णवर पुडरीय राय आपु च्छामि, तएण जाव पव्वयामि - अहासुर देवाणुप्पिया । तरण से कडरीए जाव थेरे दह, नमसइ, वदित्ता नमसित्ता येराण अतियाओ पडिनिक्खमइ ) इसके बाद कडरीक उत्थानशक्ति से उठा - उत्थानशक्ति - उठने की शक्ति से उठकर उसने स्थविरों को वदना की - नमस्कार किया । वदनो नमस्कार करके फिर उसने उनसे इस प्रकार कहा - है
कहेंति, पुरीए समणोवासए जाए जाव पडिगए) त्यारपछी उरी युवराज સ્થવિરાની વદના કરવા માટે ઉપડેલા અનેક માણસને ઘેઘાટ સાભળીને મહાખવ રાજાની જેમ સ્થવિરાની પાસે ગયે ત્યા જઈને તેણે તેમને વદન અને નમસ્કાર કર્યો ૧૬ના અને નમસ્કાર કરીને તેણે તેમની પ`પાસના કરી સ્થવિરાએ ધર્મોપદેશ આપ્યા, તે ઉપદેશને સાભળીને પુડરીક શ્રમણા પાસક બની ગયૈ। ત્યારપછી તે સ્થવિરેને વદન તેમજ નમન કરીતે પેાતાના નિવાસસ્થાને પાછા આવતા રહ્યો
(तरण से कडरी उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठाए उट्ठित्ता जाव से जहे य तुम्भे वदह ज णवर पुडरीय राय आपुच्छामि, तएण जाय पव्वयामि - अहासुह देवाणु पिया ! तण से कडरीए जान थेरे वदइ, नमसइ, वदित्ता, नमसित्ता थेराण अतियाओ पडिनिखमइ )
ત્યારપછી કડરીક ઉત્થાન શક્તિ વડે ઊભા થયા, ઉત્થાન શકિત-ઊભા થવાની શક્તિ વડે ઊભેા થઈને તેણે વિરાને વન તેમજ નમસ્કાર કર્યો વદના અર્ધ નમસ્કાર કરીને તેણે તેમને આ પ્રમાણે વિનતી
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