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___ बाताधर्मकथा वल्लभः यावत् अत्र यावच्छन्देनाय पाठोऽनुसन्धेयः कान्ता कमनीयः, मिया प्रोतिकारकः, मनोज्ञः = हृदयावस्थितः, उदुम्बरपुष्पदर्शनमिव दुर्लभः, वर्तते, स मम पुत्रः खलु ससारभयोद्विग्नः सन् इच्छति अर्हतोऽरिष्टनेमेः समीपे यावत् प्रवनितम् । अह खलु निष्क्रमणसत्कार दीक्षोत्सनं करोमि, हे देवानुपिय ! हे स्वामिन् ! अहमिच्छामि खलु स्थापत्यापुत्रस्य निकामनः = दीक्षाग्रहण कुर्वतः छत्रचामराणि-छत्रचामरमुकुटादीनि वितीर्णानि भवद्धिः प्रदत्तानि भनन्तु इति, अहमेतदर्थ भरवां समीपे समागता यन् वा छत्रचामरादीनि भान्तो वितरन्तु इति भावः।
तत खलु कृष्णवासुदेवः स्थापत्यागाथापलीमेवमयादीत् । हे देवानुप्रिये ! त्व खलु मुनिर्वृता-स्वस्था, विस्वस्था-विशेषतः स्वस्था, सुधीरा, आस्व-तिष्ठ, एक ही अङ्गजात स्थापत्य पुत्र नाम का पुत्र है। यह (इहे जाव सेण ससारभयउव्विग्गे) मुझे यल्लभ हैं । यावत् शब्द से इस पाठ का यहा सग्रह हुआ है- वह बहुत अधिक कमनीय है प्रीतिकारक है,मनोज्ञ है, मेरे हृदय में स्थान किये हुए है । और उदम्बर पुष्प के दर्शन के समान दुर्लभ है। वह मेरा पुत्र ससारभय से उद्विग्न होकर ( इच्छा अरहओ अरिट्टनेमिस्स जाव पव्वइत्तए) अहत अरिष्ट नेमि प्रभु के पास दीक्षित होना चाहता है (अण्ण निक्खमणसरकार करेमि, इच्छामिण देवाणुप्पिया ! थावच्चापुत्तस्स निक्खममाणस्स छत्तम उडचामराओ य वि दिनाओ) सो मै उसका दीक्षोत्सव करना चाहती है। इसलिये हे देवानुप्रिय ! मै आपसे यह चाहती हैं कि आप मुझे उस निमित्त-निष्क्रमण स्थापत्य पुत्र की दीक्षोत्सव के निमित्त छत्र, चामर और मुकुट आदि दे देवें। (तएण कण्हे वासुदेवे थावच्चा पत्यापुत्र नामे मेनो मे पुत्र छ त (इट्रे जाव सेण ससार भय उविग्गे) મને પ્રિય છે. અહીં (યાવતુ) શબ્દથી આપાઠને સ ગ્રહ થયે છે-તે ખૂબજ કમનીય (ઈચ્છવાયેગ્ય) છે, પ્રીતિકારક છે, મનોજ્ઞ છે, મારા હૃદયમાં તે સ્થાન પામેલ છે તેમજ ઉમરડાના પુષ્પના દર્શનની જેમ તે દુર્લભ છે તે ससार लयथा व्या ४ (इच्छद अरहओ अरिद्वनेमिस्स जाव पव्वइत्तए) मत मरिटनम प्रभुथी दीक्षित थवा या छ (अहण्ण निक्समणसक्कार करेमि, इच्छामि ण देवाणुप्पिया! थावच्चापुत्तस्स निक्खममाणस्स छत मउडचाम राओ य विदिन्नओ)हुतना दीक्षाने उत्सव Gram छ छु मेरा भाटेर દેવાનુપ્રિય ! આપ મને તે ઉત્સવ નિમિત્ત નિષ્કમણ-સ્થાપત્યા પુત્રના દીલોત્સવ भाट ७२ याभर भने ३८ वगैरे भाप (वरण कण्हे वासुदेवे थावचा