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अनगारधर्मामृतवर्षिणी ० १० ९ मादिदारचरितनिरूपणम् ५६७ ऊर्धगच्छन्तीच, तथा सिद्धविद्याविद्याधर कन्यकेच धरणीतलाद् उप्पयमाणी' उत्पन्ती-जमुच्चरन्ती, 'भट्टविज्जा' भ्राविद्या विस्मृतविद्यो चियापरकन्यकेव गगन तलाद 'ओवयमाणी' अवपतन्ती अधोनिपतन्ती, 'महागरुलवेगवित्तासिया! महापरुडवेगविनामिता महागरडवेगेन भयाक्रान्ता 'भुयगपरवानगावित्र' भुजगवरकन्यकेच नागान्येव विपलायमाणी ' विपलाय-यी, 'महाजणरसियसदारित्तत्था' महाजनरसितशब्दविनस्ता-जनसमूहकोलाहलशब्देनमीता — ठाणभट्ठा ' स्थानभ्रष्टा स्वस्थानच्युता 'आसकिसोरीचिव' अश्वरिशोरीव-अश्ववत्सावत् ' धावमाणी' धावमाना, गुरुजणदिट्ठावगहा' गुरुजनदृष्टापरापा-गुरुजना मातापित-श्वशुरा. २ वहीं २ पार २ नीचे ऊँचे उछलने लगती। (सिद्धविज्जाधरणीयला.
ओ उप्पयमाणी विज्जारकन्नगा इव) उस समय वह नौका ऐसी ज्ञात होती थी कि मानो सिद्ध विद्यावाली कोई विन्यावर कन्या ही धरणीतल से निकलकर ऊपरको उठ रही है (भट्ट विज्जाहरकनगागगणतलाओ ओवयमाणी विव) या जिसकी विद्याभ्रष्ट हो चुकी है जिसे विद्या विस्मृत हो गइ है-ऐसी कोड विद्यावर कन्या मानो आकाश से नीचे उतर रही है-(महागरुलवेगवित्तामिया विपलायमाणी भूयग वरकन्नगाइव ) या गरुड़ के भयोत्पादक वेगसे आक्रान्त हुइ मानों कोई नागकन्या ही इधर उधर भाग रही है (महाजणरसियमद्दवित्तत्या ठाणभट्टा धावमाणी आस किसोरी विव ) या जनसमूह के कोलाहल से भय भीत होकर मानों कोई घोडी की बछेरी ही अपने स्थान से भ्रष्ट होकर इधर उधर दौडती फिर रही है (गुरुजणदिछाबराहा णिगुज माणी
(सिद्धविजाधरणीयलाओ उपयमाणी विज्जाहरपन्नगा इर) मते , મજા એમાં ઉછળતી તે નાવ સિદ્ધ વિદ્યાવાળી કે વિદ્યાધર કન્યા પૃથ્વી ७५२यी नीजी. ५२ ती य तेम सागती उती ( भट्ट विज्जा विज्जाहर कन्नगा गगणतलाओ ओवयमाणीविव अथवता विधाभ्रष्ट थयेसी, विपिरभृत यसी मेवी विद्याधर न्या माशमाथी नीये तरती जाय, ( महागा
वेगवित्तासिया विपलायमाणी भूयगवरकन्नगा इव ) अथवा तो उन ભત્પાદક વેગથી આકાત થયેલી કેઈ નાગકન્યા જ આમતેમ નાસભાગ ७२ती त्य, ( महाजणरसियसद्दवित्तत्था ठाणभट्ठा धावमाणी आसकिसोरी विव ) अथवा तो भासाना बाधास्थी भयभीत s घाडीनु पछे३ तामे सामायी नामीन मामतेम तु Gemतु डाय, ( गुरुजणदिट्ठी वर हा णिगुज माणी सुयणकुलकन्नगा विव ) अथवा तो मना पाये। मातुन