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________________ ५४६ शाताधर्मकथा मेण निरतिचार चारित्र पाठािनन्न के केवल परशानदर्शन यावत्-सिद्धा सिद्धिस्थान गताः । ततस्तदनन्तर खलु मल्ली अन् सहस्राम्रवणात् निष्क्रामति निर्गच्छवि, निष्क्रम्म वहिर्जन पदनिहारं विहरति । मल्ल्या खलु भिपगममुखाः अष्टाविंशति र्गणाः, अष्टाविंशतिर्गणधरा अमनन् । मल्त्याः खलु अर्हतचत्वारिंशत् श्रमण सहस्राणि 'उकोसेण' उत्कर्षेण उत्कृष्टा श्रमणसपदभवत् । तथा-बन्धुमविप्रमुखाः पश् चारित्र का पालन किया । और इस तरह धीरेर क्रमशः वे छोंके छहों केवल ज्ञान और केवल दर्शनके अधिकारि वन गये और अन्तमें सिद्धस्थान पर पहुँच गये। - (तरण मल्ली अरहा सहसबवणाओ निक्खरह) मल्ली अर्हत उस सहस्राम्र वनसे बाहर निक्ले (निम्नमित्ता पहिया जणवयविहार विरह ) निकलकर उन्होंने बाहर के जनपदों में तीर्थकर परम्परा के अनुसार विहार करना प्रारभ कर दिया । (मल्लिस्सणं 'भिसगपामारखा अट्टानीस गणा, अट्ठावीस गणहरा, रोत्था मल्लिक्षण अरहओ 'चत्तालीस समणसारस्सीओ उक्कोसेण वधुमहामोक्खाओ पंणपन्न अज्जिया साहस्सीओ उक्कोसेण सावयाण एगासाय सारस्सी चुलसीह सहस्मो सावियाण तिन्निसयतायसीओ पण्णट्ठ च सहस्सा ) इन मेल्ली अर्हत के भिषग प्रमुख २८, गण ( गच्छ ) 'थे और २८, गणधर थे । उत्कृष्ट से इन मत्ली अरहत प्रभु की श्रमण सपत्ति ४० हजार की थी । तथा उत्कृष्ट की अपेक्षा बधुमती તેઓ છએ છ રાજાએ કેવળજ્ઞાન અને કેવળદર્શીન માટે અધિકારી થઈ ગયા भने छेवटे सिद्धस्थाने पोथी गया (तएण मल्ली अरहा सहसबवणाओ निक्समइ ) भटसी अर्हत ते सहसाभवनथी महोर नीडव्या (निक्स मित्ता बहिया जणवय विहार विहारइ ) नीजीने महारना नहोभा तेभो तर्थ ५२ ५२ प વિહાર કરવા શરૂ કર્યાં (मल्लिस ण भिसगपामोक्खा अट्ठावीस गणा, अट्ठावीस गणहरा, होत्था मल्लिस्सण अरहओ चचालीस समण साहस्तीओ० उकोसेण बधुमइ पामोक्खाओ पणपण्ण अज्जियासाहस्सीओ उक्कोसेण सावयाण एगा साथ साहस्सी, चुल सीइ सहस्सा सावियोग एगा साय साहस्सी चुलसीइ सहस्सा साविया तिन्निसय सायसीओ पण च सहस्सा ) મલી અહું તને ભિષણ્ પ્રમુખ અઠ્ઠાવીશ ( ૨૮) ગણુ ( ગચ્છ ) હતા અને અઠ્ઠાવીશે (૨૮) ગણધર હતા ઉત્કૃષ્ટથી મલ્લી અર્હત પ્રભુની શ્રમણ સપત્તિ ચાળીસ હજાર હતી તેમજ ઉત્કૃષ્ટની અપેક્ષાએ ખમતી પ્રમુખ ૫૫ 7
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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