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________________ अनगारधर्मामृतवपिणी टीका अ० ५ कृष्णवासुदेववर्णनम् राया परिवसइ, से णं तत्थ समुद्दविजयपामोक्खाणं दस ह दसाराण, वलदेवपामोक्खाणं पचण्ह महावीराण, उग्गसेणपामोक्खाणं सोलसह रायसहस्साणं, पज्जुन्नपामोक्खाणं अध्धुट्टाण कुमारकोडणि, संवपामोक्खाण सट्ठीए दुद्दतसाहस्सोण, वीरसेणपामोक्खाणं एक्कवीसाए वीरसाहस्सणि, महासेनपामोक्खाणं छप्पन्नाए बलवगसाहस्सीण, रुप्पिणीपामोक्खाणं छप्पन्नाए वलवगसाहस्सीणं, रुप्पिणीपामोक्खाणं वत्तसाए महिला साहस्सीण, अणंग सेणापामोक्खाणं अणेगाण गणियासाहस्साण, अन्नेसि च बहूण इसरतलवर जाव सत्थवाहपभिईणं वेयड्ड गिरिसायरपेरतस्स दाहिणड्डूभ रहस्स य वारवईए नयरीए आहेवच्च जाव पालेमाणे विहरइ ॥सू- ५॥ टीका- ' तत्थ गं' इत्यादि । तत्र तस्या खलु द्वारारत्या नगया ' कण्हे नाम ' कृष्णो नाम वासुदेव. राजा = निखण्डाधिपति परिवसति । स खलु तत्र 'समुहविजयपामोक्खाण ' समुद्रविजयप्रमुखाना दशाना 'दसाराण ' दशार्हाणा बलदेवमुखाना ' पचण्ड' पञ्चाना महावीराणाम्। उग्रसेनममुखाना पोडशाना तत्थ ण चारचईए नयरीए ' इत्यादि C टीकार्य - (तत्या चारचईए नयरीए) उस द्वारावती नगरी मे (कण्हे नामं वासुदेवे राया परिवसइ) कृष्ण वासुदेव नामके तीन खड के अधिपति राजा रहते थे ( सेण तत्य समुद्दविजयपामोखाण दसण्ह दसोराण) वे वश ममुद्र विजय आदि दश दशाह का ( बलदेव पामोक्खाण तरक्षण वारवईए नयरीए ' इत्यादि ॥ अर्थ - ( तत्थण वारवईए नयरीए ) ते द्वारावती नगरीभां ( वण्हे नाम वासुदेवे राया परिवसइ) 'शु वासुदेव नामे ये भरना अधिपति राल रहेता તા ( सेण तत्थ समुद्दविजयपामोक्खाण दसह साराण ) त्या विन्य वगेरे हानि ( बल्देवपामोक्खाण पचण्ह महावीराण ) સમુદ્ર મળ
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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