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________________ - - १ - - - - __ ...माताधर्ममा सारिताः । तत् तस्मात् श्रेयः खलु हे देशानुपियाः ! अस्माक कम्मकाय मक पराजयाय 'जत्त' यात्रा युद्धगावा ग्रहीतुम्भीरतु श्रेय इति पूर्वसम्बन्ध इति कृत्वा इति परामृश्य-विचार्य, परम्मरस्यैतगध प्रतिगणपन्ति, स्वीकृर्वन्ति, पति क्षुत्प, से जितशत्रुममुवाः पडपि राजानः स्नाताः सनद्वारा युट्ठोपकरण-कालगति धारणेन सज्जीकृतशरीराः, हस्तिस्कन्धरम्गता बानोपरिममारूढा, ' सकोरर पहुँचे-वहां उसने हमलोगों के दूतों का कोई भी सत्कार और सन्मान नही क्रिया-किन्तु उन्हे अपमानित कर अपने महल के पिछले शीट दरवाजे से बाहिर निकलवा दिया-त) अत:-( सेयं खलु देवाणुलिया! अम्हें कुभगस्सजत्त गेत्तिा त्ति कटु अण्णमण्णस्स फ्धमट्ट पी सुणेति, पडिसुणित्ता, पहाया, मण्णद्धा धिवरगया सकोरेटमल दामेण उत्तण धरिजमाणेण उदधुर्यमाणाहिं सेयवरचामरहिमस्या हयगयरपर्चरजोहकलिया चाउरगिणी सेगारा सद्धि मपरिबुडा सब्धि ड्डीएजाब निगच्छति) हम लोगों का अब यही कर्तव्य श्रेयस्कर है कि हम लोग 'कुम्भक राजा को पराजित करने के लिये उन पर चढाई कर दें। इस प्रकार का जर उन संघ की परामर्श से चुकी तब सब ने एक मत ही इस बात को मान लिया मन लेने के बाद वे जितशत्रु प्रमुखें सय ही राजा नहा धोकर युद्धोपकरणों से सुसज्जित हो गये । और हाथियों के स्कधो पर आल्ढ होकर महान २ यो से-गजों से रथों से આપણા તેને સાકાર કે સન્માન કઈજ કર્યું નથી, અને તેં મને અપમાતિ" કિરીને પોતાના મહેલને પાછલા નાના બારણેથી બહાર કાઢી મુકવ્યું છે () એથી सेयं खलु देवाणुप्पिया । जम्ह कुमगस्स जत्न गेण्डित्तए तिकडे, अण्ण मण्णस्स एयगड पडिसणेति,परि सुणित्ता, व्हाया सणद्धा, हत्यिक वर्गयां सको स्टमल्लदामेण छत्तेणे धरिजमाणेणं उधुयमाणाईि सेयवरचामराहि महया हय गयरहपरजोहकलियाए चाउरगिणीए, सेणाए सद्धि सरिखुडा सविडीएं जांव रवेणं सदहि २ नगरेंहितो जाव निगच्छति ) , હવે અમારા માટે એક જ કર્તવ્ય, શ્રેયસ્કર લાગે છે કે અમે કન્નકુ AMD iqq! भाटे, तमना १५२ मा ४ीयो - - - ) જ્યારે આ પ્રમાણે બધાએ વિચાર કર્યો ત્યારે સહુએ એકમત થઈને - આ નિર્ણય-સ્વીકારી લીધે ત્યારપછી જીતશત્રુ પ્રમુખ -રાજાઓ સ્નાન કરીને યુદ્ધ માટેના, બધા સાધનોથી સુસજજ થઈ ગયા અને તેઓ મધા
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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